Saturday, February 6, 2010

सच की लड़ाई

सवालों से लड़कर, सँवरता गया हूँ
विवादों से भिड़कर, उभरता गया हूँ
सुमन खुद ही खुशबू में, तब्दील होकर
सरे-वादियों में, महकता गया हूँ

यूँ दुनिया से लड़ना, कठिन काम यारो
है खुद को बदलना, हरएक शाम यारो
मेरी जो भी फितरत, ये दुनिया भी वैसी,
हो कोशिश कभी, न हों बदनाम यारो

नया सीख लेने की, हरदम ललक है
कहीं पर जमीं तो, कहीं पर फलक है
मगर दूसरों की, तरफ है निगाहें,
जो दर्पण को देखा, तो खुद की झलक है

कहूँ सच अगर तो, वे मुँहजोर कहते
अगर चुप रहूँ तो, वे कमजोर कहते
मगर जिन्दगी ने ही, लड़ना सिखाया,
है सच की लड़ाई, जिसे शोर कहते

24 comments:

Vivek said...

its so true...

गुड्डोदादी said...
This comment has been removed by the author.
गुड्डोदादी said...
This comment has been removed by the author.
vandana gupta said...

नया सीख लेने की हरदम ललक है।
कहीं पर जमीं तो कहीं पर फलक है।
मगर दूसरों की तरफ है निगाहें,
जो दर्पण को देखा तो खुद की झलक है।।

waah ..........satya ka aaina dikhati kavita.........bahut hi sundar.

http://vandana-zindagi.blogspot.com

चन्द्र कुमार सोनी said...

sach ki ladaai ladne waalo ko meraa salaam.
thanks.
www.chanderksoni.blogspot.com

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

कहूँ सच अगर तो वे मुँहजोर कहते।
अगर चुप रहूँ तो वे कमजोर कहते।
मगर जिन्दगी ने ही लड़ना सिखाया,
है सच की लड़ाई जिसे शोर कहते।।

बहुत सुन्दर!

Gyan Dutt Pandey said...

ये पंक्तियां तो लाजवाब हैं -
नया सीख लेने की हरदम ललक है।
कहीं पर जमीं तो कहीं पर फलक है।
मगर दूसरों की तरफ है निगाहें,
जो दर्पण को देखा तो खुद की झलक है।।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

कहूँ सच अगर तो वे मुँहजोर कहते।
अगर चुप रहूँ तो वे कमजोर कहते।

बहुत सुंदर.

Udan Tashtari said...

नया सीख लेने की हरदम ललक है।
कहीं पर जमीं तो कहीं पर फलक है।
मगर दूसरों की तरफ है निगाहें,
जो दर्पण को देखा तो खुद की झलक है।।


-वाह! क्या बात है.

Yogesh Verma Swapn said...

नया सीख लेने की हरदम ललक है।
कहीं पर जमीं तो कहीं पर फलक है।
मगर दूसरों की तरफ है निगाहें,
जो दर्पण को देखा तो खुद की झलक है।।

bahut khoob.

Harshvardhan said...

suman ji aajkal humse naarajgi chal rahi hai kya? aapka koi comment hio nahi aaata ....
sach ki ladayi yahi hai kya

Vandana Singh said...

behad sarthak or sunder abhivyakti ....

श्यामल सुमन said...

हार्दिक घन्यवाद सहित आप सब के प्रति विनम्र आभार प्रेषित है। स्नेह बनाये रखें।


सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

गुड्डोदादी said...
This comment has been removed by the author.
गुड्डोदादी said...

श्यामल जी
सदा सुखी रहो
आपके गीत हो गज़ल,हास्य,लेख हो या व्यंग्य - सब में एक खास आकर्षणः है आप बहुत अच्छा लिखते हैं सभी बहुत चाव से पढ़तीं हूँ और शब्दों में सम्वेदनाएं निकलती हैं. आप निरंतर सफलता पूर्वक लिखते रहें मेरी आपको अनन्त शुभ कामनाएं
कृपया हिंदी की गलती पर नहीं हसे हिंदी नहीं आती
धन्यवाद
आपकी गुड्डो दादी चिकागो से

रंजना said...

कई बार पढ़ चुकी हूँ,पर इस रचना के मधुर रस से बाहर निकलने का मन ही नहीं कर रहा....
जीवन को सीख और दिशा देती कैसी अद्भुद रचना आपने लिख डाली भाई जी...वाह...
यह जितना जीवन दर्शन सिखाती हैं उतना ही काव्य कला पक्ष यह भी सिखा रही है कि सुन्दर भावों का अद्भुद नियोजन शब्दों में कैसे किया जाता है...

kshama said...

सवालों से लड़कर सँवरता गया हूँ।
विवादों से भिड़कर उभरता गया हूँ।
सुमन खुद ही खुशबू में तब्दील होकर
सरेवादियों में महकता गया हूँ।।
Ekse badhke ek!

निर्मला कपिला said...

सवालों से लड़कर सँवरता गया हूँ।
विवादों से भिड़कर उभरता गया हूँ।
सुमन खुद ही खुशबू में तब्दील होकर
सरेवादियों में महकता गया हूँ।।
श्यामल जी अद्भुत लाजवाब और प्रेरना देती स्कारात्मक रचना है बहुत बहुत बधाई

Asha Joglekar said...

सवालों से लड़कर सँवरता गया हूँ।
विवादों से भिड़कर उभरता गया हूँ।
सुमन खुद ही खुशबू में तब्दील होकर
सरेवादियों में महकता गया हूँ।।
वैह शामल जी बहुत सुंदर अभिव्यक्ती ।

डॉ टी एस दराल said...

सुमन खुद ही खुशबू में तब्दील होकर
सरेवादियों में महकता गया हूँ।।

कहूँ सच अगर तो वे मुँहजोर कहते।
अगर चुप रहूँ तो वे कमजोर कहते।
मगर जिन्दगी ने ही लड़ना सिखाया,
है सच की लड़ाई जिसे शोर कहते।।

यथार्थ से परिपूर्ण । अति सुन्दर।

Urmi said...

यूँ दुनिया से लड़ना कठिन काम यारो।
है खुद को बदलना हरएक शाम यारो।
मेरी जो भी फितरत ये दुनिया भी वैसी,
हो कोशिश कभी न हों बदनाम यारो।।
बिल्कुल सही लिखा है आपने! अत्यंत सुन्दर रचना! बधाई!

Kusum Thakur said...

नया सीख लेने की हरदम ललक है।
कहीं पर जमीं तो कहीं पर फलक है।
मगर दूसरों की तरफ है निगाहें,
जो दर्पण को देखा तो खुद की झलक है।।

वाह वाह क्या बात कही है सुमनजी ......लाज़वाब रचना , सदा की तरह !!

Apanatva said...

bahut sunder bhav aur utanee hee sunder abhivykti................
utkrusht krutee..........

समयचक्र said...

लाज़वाब रचना...

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!