जिनसे मैंने जीना सीखा, खड़ा दूर क्यों आज वही
हुई कभी ना ऊँची बातें, है आँखों में लाज वही
पहले जो अपनापन पाया, बाहर से दिखता वैसा
अन्दर कुछ बदला सा क्यूँ है, बतलायेगा राज वही
बदल रहे तारीख हमेशा, सालों साल महीनों में
लगा रहा रोटी पाने को, खड़ा सामने काज वही
बिगड़ गए हालात देश के, जिनसे पूछो, वे कहते
खुद को जब कुछ करना पड़ता, मुर्दानी आवाज वही
प्रगतिवाद का पोषक बनकर, परिवर्तन की बात करे
लेकिन घर में देख रहा हूँ, जीने का अन्दाज वही
बदल रहे इन्सानी रिश्ते, आपस का विश्वास घटा
समझ न पाया क्यूँ ऊपर से, दिखता सतत समाज वही
क्या अच्छा है और बुरा क्या, सबको सब समझाते हैं
चाहे जो अंजाम सुमन का, बेहतर सा आगाज वही
हुई कभी ना ऊँची बातें, है आँखों में लाज वही
पहले जो अपनापन पाया, बाहर से दिखता वैसा
अन्दर कुछ बदला सा क्यूँ है, बतलायेगा राज वही
बदल रहे तारीख हमेशा, सालों साल महीनों में
लगा रहा रोटी पाने को, खड़ा सामने काज वही
बिगड़ गए हालात देश के, जिनसे पूछो, वे कहते
खुद को जब कुछ करना पड़ता, मुर्दानी आवाज वही
प्रगतिवाद का पोषक बनकर, परिवर्तन की बात करे
लेकिन घर में देख रहा हूँ, जीने का अन्दाज वही
बदल रहे इन्सानी रिश्ते, आपस का विश्वास घटा
समझ न पाया क्यूँ ऊपर से, दिखता सतत समाज वही
क्या अच्छा है और बुरा क्या, सबको सब समझाते हैं
चाहे जो अंजाम सुमन का, बेहतर सा आगाज वही
17 comments:
बिगड़ गए हालात देश के, जिनसे पूछो, वे कहते
खुद को जब कुछ करना पड़ता, मुर्दानी आवाज वही
सही कहा आपने ,बहुत सुंदर बधाई
बहुत बढ़िया शानदार प्रस्तुति
बहुत सुन्दर गजल सर....
सादर.
खुबसूरत अभिवयक्ति......
कल 06/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
जिनसे मैंने जीना सीखा, खड़ा दूर क्यों आज वही
हुईं कभी ना ऊँची बातें, है आँखों में लाज वही
बिहल वेदना सारी गजल
सुंदर गीत गजल लिखते हो रफ़्तार में ना आये कमी
जीवन में कुछ भी हो जाए कलम ना बेचना कभी
अत्यन्त प्रभावी अभिव्यक्ति..
जिनसे मैंने जीना सीखा, खड़ा दूर क्यों आज वही
हुईं कभी ना ऊँची बातें, है आँखों में लाज वही
Bahut hee sundar!
बहुत ख़ूब!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 06-08-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-963 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल .....!
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल .....!
सच्चाई को कहती खूबसूरत गजल
बहुत सुंदर ग़ज़ल , यथार्थ के करीब.
वाह जी वा...
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1. ब्लॉगर में LinkWithin का Advance
Installation
2. मुहब्बत में तेरे ग़म की क़सम ऐसा भी होता है
3. तख़लीक़-ए-नज़र
Very nice post.....
Aabhar!
Mere blog pr padhare.
***HAPPY INDEPENDENCE DAY***
नमस्ते अंकल,
यहाँ मैं जीवन की कड़वी सच्ची बातों का अवलोकन ही नहीं देख रहा हूँ:
"जिनसे मैंने जीना सीखा, खड़ा दूर क्यों आज वही"
बल्कि कुछ निष्कर्ष:
"बतलायेंगे राज वही"
और कुछ सीख भी
"चाहे जो अंजाम सुमन का, लेकिन है आगाज वही"
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