Wednesday, November 27, 2013

कोख सहित ममता बिके

नाम सुमन तो क्या हुआ, केवल यह पहचान?
अपने भीतर खोज नित, तू कितना इन्सान।।

धर्म-स्थल के सामने, सुन दारुण सी चीख।
मालिक सुन ले फिर भला, ये क्यूँ माँगे भीख।।

इन्सानों से अब नहीं, चीजों से है प्यार।
होता अब इन्सान से, चीजों सा व्यवहार।।

हालत ये कैसी अभी, अब तो आँखें खोल।
कोख सहित ममता बिके, लगते उसके बोल।।

कैसे धन-अर्जन अधिक, फँसा हुआ संसार।
भला किसे परवाह जो, टूट रहा परिवार।।

टूटा गर परिवार तो, सब होंगे स्वच्छन्द।
ममता, करुणा, प्रेम की, धारा नित नित मन्द।।

जाने अनजाने सही, उलझे प्रायः लोग।
भौतिकता की दौड़ का, हमें मिटाना रोग।।

1 comment:

कौशल लाल said...

धर्म-स्थल के सामने, सुन दारुण सी चीख।
सुनते गर मालिक सुमन, नहीं माँगते भीख।।
बहुत सुन्दर .....कटु सत्य .....

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!