Friday, December 27, 2013

काँटों से निबटना जरूरी

कदम खुद का खुद से परखना जरूरी
मुसीबत से लड़कर निकलना जरूरी

सहज नींद आती है रोटी भी मीठी
पसीने में हर दिन महकना जरूरी

चमक जिसके बाहर, अन्दर भी झाँको
भीतर सफाई से चमकना जरूरी

बड़ी बात करने में मशगूल सारे
पाँवों का चादर में सिमटना जरूरी

चाहत खुशी की लिए दिल में फिरते
सुमन को भी काँटों से निबटना जरूरी 

5 comments:

कालीपद "प्रसाद" said...

सहज नींद आती है रोटी भी मीठी
पसीने में हर दिन महकना जरूरी

चमक जिसके बाहर, अन्दर भी झाँको
भीतर सफाई से चमकना जरूरी
बहुत सुन्दर !
नई पोस्ट मेरे सपनो के रामराज्य (भाग तीन -अन्तिम भाग)
नई पोस्ट ईशु का जन्म !

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

क्या बात वाह! अति सुन्दर

तीन संजीदा एहसास

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (29-12-13) को शक़ ना करो....रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1476 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Arun sathi said...


चमक जिसके बाहर, अन्दर भी झाँको
भीतर सफाई से चमकना जरूरी
बहुत सुंदर...

कौशल लाल said...

बहुत सुन्दर.....

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