Sunday, July 6, 2014

मगर सिसकती रात ना पूछ

अपने घर की बात ना पूछ
बदल गए हालात ना पूछ

पाला पोसा जिसे पढ़ाया
वो मारे हैं लात ना पूछ

टूटन आयी परिवारों में
अपनों से प्रतिघात ना पूछ

भाव-जगत और सावन सूखा
आँखों में बरसात ना पूछ

जो यादों में, उनसे दूरी
जलते हैं जज्बात ना पूछ

धर्म-गुरू लड़ते आपस में
दिल में तब आघात ना पूछ

भले सुमन मुस्कान ओढ़ ले
मगर सिसकती रात ना पूछ

4 comments:

Unknown said...

वाह बहुत खूब.....

Unknown said...

वाह बहुत खूब.....

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत सुन्दर |
नई रचना मेरा जन्म !

गुड्डोदादी said...

जो यादों में, उनसे दूरी
जलते हैं जज्बात ना पूछ|
(पीड़ा होती जब काँटा चुबता तन में |
दूसरा काटा चुबे तो सुख देता मन में

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