Monday, November 2, 2015

कलम को बात कहने दो

खुशी गम से निबटने की जगाती भावना कविता
तजुर्बे से गुजरते शब्द की नित साधना कविता
जहाँ कहते स्वतः श्रोता मेरी बातें ही कविता में
सफल होकर कलम की फिर बनी आराधना कविता

हृदय की भावनाओं की कलम को बात कहने दो
जगह खुद शब्द चुन ले जो बिना छेडे ही रहने दो
कवि तलवार पे चल कर सजाते भावना कोमल
सदा सरिता सी कविता को सहजता से ही बहने दो

नहीं कविता को तुम यारों कभी नारा बना देना
हकीकत से जुडे जनवाद की धारा बना देना
नहीं पूजा करे कविता किसी की चापलूसी ही
उपस्थित भाव शब्दों को जरा प्यारा बना देना

सियासत के सभी संतों की है आराधना कैसी
चुनावी जंग में दिखला रहे जन-भावना कैसी
मिली गद्दी जिसे समझो वही पारसमणि पाया
तुरत बनते कुबेरों सा ये उनकी साधना कैसी

बिछाये मौत की चादर चुनावी जंग जारी है
टहलना बकरियों का भेड़ियों के संग जारी है
अभी की दोस्ती और दुश्मनी का है भरोसा क्या
बनाया खुद को गिरगिट सा बदलना रंग जारी है

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