साहिब! अब तो करो विचार।
धीरे धीरे खिसक रही क्यों हाथों से सरकार।।
साहिब! अब -----
जितने तेरे आज समर्थक, व्यर्थ करे तकरार।
जो सवाल करते उसको झट, कहते क्यों गद्दार।।
साहिब! अब -----
लोगों ने कुछ आस लगाकर दिया आपको प्यार।
पर देखो शासन की हालत, लोकतंत्र बीमार।
साहिब! अब -----
बेहतर हो परिवेश हमारा, विनती बारम्बार।
राह दिखाए कलम सुमन जो मत देना दुत्कार।।
साहिब! अब -----
धीरे धीरे खिसक रही क्यों हाथों से सरकार।।
साहिब! अब -----
जितने तेरे आज समर्थक, व्यर्थ करे तकरार।
जो सवाल करते उसको झट, कहते क्यों गद्दार।।
साहिब! अब -----
लोगों ने कुछ आस लगाकर दिया आपको प्यार।
पर देखो शासन की हालत, लोकतंत्र बीमार।
साहिब! अब -----
बेहतर हो परिवेश हमारा, विनती बारम्बार।
राह दिखाए कलम सुमन जो मत देना दुत्कार।।
साहिब! अब -----
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