करो सियासत पर तल्खी का, है कोई स्थान नहीं।
लोकतंत्र में जाग रहे सब, सोया हिन्दुस्तान नहीं।।
चुना आपको पांच बरस तक, आप अभी  के आका हो।
तब  तो ये कर्तव्य आपका, किसी  के घर ना फाका हो।
कहीं कमी तो सुन लोगों की, आप करो अभिमान नहीं।।
लोकतंत्र में जाग रहे -----
सभी  दलों  ने  सत्ता  पायी, प्रायः सबका  मान  हुआ।
दिन बहुरे  केवल शासक के, लोगों का नुकसान हुआ।
कभी  नहीं  शासक  ये  सोचे, और कोई विद्वान नहीं।।
लोकतंत्र में जाग रहे -----
जनमत  से  सहमत  होकर ही, लोकतंत्र चल पाता है।
लोगों  का  रक्षक जो शासक, तक्षक बन डंस जाता है।
क्यों पलाश  का सुमन बने हो, होगा शेष निशान नहीं।।
लोकतंत्र में जाग रहे -----
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २४ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत खूब
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