Monday, October 27, 2008

सीख लिया

रो कर मैंने हँसना सीखा, गिरकर उठना सीख लिया
आते-जाते हर मुश्किल से, डटकर लड़ना सीख लिया

महल बनाने वाले बेघर, सभी खेतिहर भूखे हैं
सपनों का संसार लिए फिर, जी कर मरना सीख लिया

दहशतगर्दी का दामन क्यों, थाम लिया इन्सानों ने
धन को ही परमेश्वर माना, अवसर चुनना सीख लिया

रिश्ते भी बाज़ार से बनते, मोल नहीं अपनापन का
हर उसूल अब है बेमानी, हटकर सटना सीख लिया

फुर्सत नहीं किसी को देखें, सुमन असल या कागज का
जब से भेद समझ में आया, जमकर लिखना सीख लिया

19 comments:

श्रीकांत पाराशर said...

Bahut achha srijan. achha laga. Diwali ke deepakon ka prakash aapke poore pariwar ke jeevan men khushiyon ki roshani bharde, yahi subh kamnayen hain.

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

बहुत अच्छा है...... बधाई,
आपको, परिवार सहित दीपावली की शुभकामनायें......

ghughutibasuti said...

सुन्दर !
आपको व आपके परिवार को दीपावली की शुभकामनाएं ।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा..वाह!!

आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

दिनेशराय द्विवेदी said...

अच्छी बात!
दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएँ। दीपावली आप और आप के परिवार के लिए सर्वांग समृद्धि और खुशियाँ लाए।

समयचक्र said...

दीपावली पर्व की शुभकामना और बधाई .

महेश लिलोरिया said...

सुमन असल या कागज का...
आपकी सीख काबिले गौर है।
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

देश के मौजूदा हालात को किवता में बहुत यथाथॆपरक ढंग से दशाॆया गया है । किवता कई सवाल भी खडे करती है । किवता की पंिक्तयां मन को झकझोर देती हैं ।

http://www.ashokvichar.blogspot.com

Amit K Sagar said...

बस लिखते रहिये.
---
मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं.
शुक्रिया.

bhawna....anu said...

रिश्ते भी बाज़ार से बनते, मोल नहीं अपनापन का।
हर उसूल अब है बेमानी,हँटकर सटना सीख लिया।। .........
behad yathaarthparak likha hai...shubhkaamnaayen.

shama said...

Shuruse aakhirtak...bohot achhee, saral, par marmik kavya rachna..."Maine likhna seekh liya.."
"Girkar uthna seekh liya...!"..kya, kya sandarbh dun..?
Aur jab Sameerji ne keh diya to unke aage mai to ek zarraa hun !

योगेन्द्र मौदगिल said...

बहुत अच्छी कविता है भाई
साधुवाद

योगेन्द्र मौदगिल said...

सुंदर रचना के लिये आपको बधाई

sandhyagupta said...

sachchi anubhutiparak abhivyakti. Badhai

guptasandhya.blogspot.com

Satish Saxena said...

वाह वाह ! बहुत सौम्य रचना !

Shekhar said...

श्यामल सुमन जी
नमस्कार
"मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।"
आपके ये शब्द सच में ही मुश्किलों में डटे रहने की प्रेरणा देते हैं

हमारे ब्लॉग
http://lykhni.blogspot.com/
पर दस्तक देते रहें

Anonymous said...

अति उत्तम रचना/वर्तमान बदलते परिवेश पर अच्छा व्यंग !बधाई/

रंजना said...

waah ! bahut hi sundar......yatharth ko sundar sateek roop me chitrit kiya hai aapne.

गुड्डोदादी said...


रिश्ते भी बाज़ार से बनते, मोल नहीं अपनापन का
हर उसूल अब है बेमानी, हटकर सटना सीख लिया

सीख लिया दुनियां का चलन चलन भी सीख लिया
किसे कहें अपना वह भी आँख दिखा कर चल दिया

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विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!