शक्ल हो बस आदमी की क्या यही पहचान है
ढूँढता हूँ दर-ब-दर मिलता नहीं इंसान है
घाव छोटा या बड़ा एहसास दर्द का एक है
दर्द एक दूजे का बाटें तो यही एहसान है
अपनी मस्ती राग अपना जी लिए तो क्या जिए
ज़िंदगी, उनको जगाना हक से जो अनजान हैं
लूटकर खुशियाँ हमारी अब हँसी वे बेचते
दिख रहा, वो व्यावसायिक झूठी सी मुस्कान है
हार के भी, अब सुमन के हार की चाहत उन्हें
ताज सर से हट न जाए बस यही अरमान है
ढूँढता हूँ दर-ब-दर मिलता नहीं इंसान है
घाव छोटा या बड़ा एहसास दर्द का एक है
दर्द एक दूजे का बाटें तो यही एहसान है
अपनी मस्ती राग अपना जी लिए तो क्या जिए
ज़िंदगी, उनको जगाना हक से जो अनजान हैं
लूटकर खुशियाँ हमारी अब हँसी वे बेचते
दिख रहा, वो व्यावसायिक झूठी सी मुस्कान है
हार के भी, अब सुमन के हार की चाहत उन्हें
ताज सर से हट न जाए बस यही अरमान है
21 comments:
बहुत बेहतरीन.... !
अच्छा लिखा है आपने । िवषय की अभिव्यक्ित प्रखर है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख महिलाओं के सपने की सच्चाई बयान करती तस्वीर लिखा है । समय हो तो उसे पढें और राय भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
बहुत बढ़िया!
घाव छोटा या बड़ा एहसास दर्द का एक है।
दर्द एक दूजे का बाटें तो यही एहसान है॥
अच्छा लिखा
wonderfull to read live poems
हार के भी अब सुमन के हार की चाहत उन्हें।
ताज काँटों का न छूटे बस यही अरमान है॥
बहुत अच्छा लिखा है आपने।
kaphi sarhaniya likha hai apne ... nirantar likhate rahe
शक्ल हो बस आदमी की क्या यही पहचान है।
ढूँढता हूँ दर-ब-दर मिलता नहीं इंसान है॥
यूँ तो सारे अशआर ही अच्छे हैं पर ये बढिया लगा ...बधाई।
शक्ल हो बस आदमी की क्या यही पहचान है।
ढूँढता हूँ दर-ब-दर मिलता नहीं इंसान है॥
बहुत बढिया!बधाई।
शक्ल हो बस आदमी की क्या यही पहचान है।
ढूँढता हूँ दर-ब-दर मिलता नहीं इंसान है॥
घाव छोटा या बड़ा एहसास दर्द का एक है।
दर्द एक दूजे का बाटें तो यही एहसान है॥
bahut achhe bhaav aur shabd
शक्ल हो बस आदमी की क्या यही पहचान है।
ढूँढता हूँ दर-ब-दर मिलता नहीं इंसान है॥
umda sher hai..
dhnywaad
Aapki saaree rachanaye...aur unmekee harek pankti gazab hai, lajawab hai..
Par pehli do panktiyan apneaapme mukammal hain...kitna kuchh keh jaatee hain...!
"Kya mar gaye sab insaan ?
Bach gaye sirf Hindu ya Musalmaan?"...ek kavitameki ye mereehee panktiyan hain...aapke jaisa sundar to mai nahee likh saktee...par gar aap mere blogpe padhen to behad khushee hogee, ya ek lekhka zikr karna chahugi.." Pyarke Raah Dikha Duniyako"...2007 ke archives me hai...baadme sahee tareekh tatha maah bhej doongee...badee tadapke saath likha hai maine...
"शक्ल हो बस आदमी की क्या यही पहचान है।
ढूँढता हूँ दर-ब-दर मिलता नहीं इंसान है॥"
आरंभ की दो पंक्तियों ने ही मन को एकदम कस कर जकड लिया.
सशक्त अभिव्यक्ति!!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- बूंद बूंद से घट भरे. आज आपकी एक छोटी सी टिप्पणी, एक छोटा सा प्रोत्साहन, कल हिन्दीजगत को एक बडा सागर बना सकता है. आईये, आज कम से कम दस चिट्ठों पर टिप्पणी देकर उनको प्रोत्साहित करें!!
ताज कांटो का का ना छूटे बस यही अरमान है
बहूत बढिया!
वाह वाह.. सुंदर रचना के लिये बधाई स्वीकारें साधुवाद..
घाव छोटा या बड़ा एहसास दर्द का एक है।
दर्द एक दूजे का बाटें तो यही एहसान है॥
... बहुत ही प्रभावशाली रचना है।
सुमन जी इत्तेफाकन इंसान मिल जाए तो मुझे भी खबर कर देना
जमीन जायदाद बांटने से फुर्सत मिलेगी तो दर्द भी बाँटेंग
जो जागे हुए भी सोने का बहाना कर रहा हो उसे कैसे जगायेंगे आप
बिल्कुल सही कहा हमारी खुशिया लूट कर उन्ही का विक्रय हो रहा है
हार के भी हार की चाहत बहुत बढ़िया
वाह वाह..क्या ही उम्दा गज़ल निकाली है..बधाई..
((आज पुरानी गज़ल से गुजर लिए)
शक्ल हो बस आदमी की क्या यही पहचान है
ढूँढता हूँ दर-ब-दर मिलता नहीं इंसान है
हर बार की तरह गहन और बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...
अपनी मस्ती राग अपना जी लिए तो क्या जिए
ज़िंदगी, उनको जगाना हक से जो अनजान हैं
बहुत उम्दा गज़ल
बढ़िया रचना फिर भी टिप्पणी में
इंसान
पढ़ सको तो शक्ल ही आदमी की पहचान है
ढूँढते रह जाओगे मिलता नहीं इंसान है
घाव छोटा या बड़ा एहसास दर्द का एक है
दर्द एक दूजे का बाटें तो क्या एहसान है
अपनी मस्ती राग जी लिए तो क्या जिए
ज़िंदगी तो वो जीए जो जिये जरूरतमंद के लिए
लूटकर खुशियाँ उनकी हँसी जो बेचते हैं
वो सिनेमा सी झूठी दास्तान है
हार के भी, अब सुमन पर जीत की चाहत उन्हें
ताज सर से उड़ न जाए बस उनका अरमान है
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