नहीं खुशी का कोई ठिकाना, दिल की चाहत होती पूरी
जब जब ढ़ूँढ़ा अपनापन तो, अपनों से बढ़ जाती दूरी
प्रायः सबकी फितरत ऐसी, ख्वाब सुनहरे सजते हैं
गीत गजल लिखते रहते पर, बातें दिल में रही अधूरी
जीकर मरते लोग बहुत कम, अधिक यहाँ मर के जीते
जीने की चाहत ना फिर भी, जीने की होती मजबूरी
नहीं मयस्सर रोटी उनको, जो सबको रोटी देते
चलता शासन ठंढ़े घर से, रातें शासक की सिन्दूरी
देखा जो हालात अभी तक, सुमन सिसकता रहता है
जिसने लूटा है गुलशन को, खिदमत उसकी नहीं जरूरी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ-
25 comments:
जीकर मरते लोग बहुत कम, अधिक यहाँ मर के जीते।
जीने की चाहत न फिर भी, जीने की होती मजबूरी।।
--बहुत खूब!!
सुमन जी जीवन की गहराई है आपकी रचना में
soch raha tha kaun sa sher chunu jo sarvashreshth ho ,magar yahan to sabhi shreshth hain, bahut umda rachna ke liye badhai.
जीकर मरते लोग बहुत कम, अधिक यहाँ मर के जीते।
जीने की चाहत न फिर भी, जीने की होती मजबूरी।।
बहुत सुन्दर रचना . बधाई
जीकर मरते लोग बहुत कम, अधिक यहाँ मर के जीते।
जीने की चाहत न फिर भी, जीने की होती मजबूरी।।
.......waah
बहुत बढिया रचना है।
प्रायः सबकी फितरत ऐसी, ख्वाब सुनहरे सजते हैं।
गीत गजल लिखते रहते पर, बातें दिल में रही अधूरी।।
प्रायः सबकी फितरत ऐसी, ख्वाब सुनहरे सजते हैं
गीत गजल लिखते रहते पर,बातें दिल में रही अधूरी
सच ही कहा है.
हम कितना भी अच्छा लिख लें, पर समय की अग्नि परीक्षा में जो खरा उतरे, वही पूरी बात कहने और लिखने का अधिकारी है.
सुन्दर, और सच्ची ग़ज़ल को मेरा नमन.
चन्द्र मोहन गुप्त
दिल को छो गयी आपकी रचना.
बधाई.
टिप्पणी में जो कुछ लिखा वह मेरा परसाद।
कहने सुनने से मिटे जीवन का अवसाद।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
प्रिय श्यामलाल जी,
कई दिनों से आपकी लेखनी के रस का पान सारथी पर करता आया हूँ. आपको प्रभु ने अभिव्यक्ति की विशेष शक्ति दी है. इतना ही नहीं, आपकी कलम हमेशा पाठकों को प्रोत्साहित करने के लिए चलती है.
अलख जगाते रहें!!
सारथी पर "मनोरमा" अब "पसंदीदा चिट्ठे" में दिखने लगा है, जरा जांच लें!!
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
श्यामल जी बहुत सुन्दर रचना है। मुझे खास तौर पे ये लाइने पसन्द आई।
जीकर मरते लोग बहुत कम, अधिक यहाँ मर के जीते।
जीने की चाहत न फिर भी, जीने की होती मजबूरी।।
bahut hi sundar gazal likhi hai aapne
जीकर मरते लोग बहुत कम, अधिक यहाँ मर के जीते।
जीने की चाहत न फिर भी, जीने की होती मजबूरी।।
Baav bahut si spast hain.
Navit Nirav
MUJHE LAGTA HE YAHI PANKTIYA IS RACHNA KI JAAN HE..VESE LAGBHAG SABNE ISI PANKTI SE AAPKI RACHNA SARAAHI HE..
जीकर मरते लोग बहुत कम, अधिक यहाँ मर के जीते।
जीने की चाहत न फिर भी, जीने की होती मजबूरी।।
ACHCHA LAGAA AAPKA BLOG
बहुत खूब.. जीवन के दर्शन को बहुत गहराई के साथ परोसा है आपने.. आभार
Shyamalji, jab itne diggaj aapko tippanee de gaye, to meree kya haisiyat? Mai to aaplogonse seekhne aatee hun...
Bade dinose aapko apne blogpe nahee dekha...shayad,mere badle hue URL ke karanbhee pareshanee pesh aayee hogee..
Blogskaa vishayanusaar vibhajan kar diya hai..jaise" aajtak yahantak","Kavita","kahanee","sansmaran","baagwaanee",lalitlekh","gruhsajja", "fiber art" aadi...
samay milnepe gar aayen aur margdarshan karen to bohot shukrguzaar rahungi..
अब में क्या कहूँ
muze apki kavita bahut achchi lagi. ese hi likhate rahe.
vijay agrawal
जीकर मरते लोग बहुत कम, अधिक यहाँ मर के जीते।
जीने की चाहत न फिर भी, जीने की होती मजबूरी।।
बहुत खूबसूरत रचना.
रामराम.
बिलकुल सही है लोग मर मर कर ही जी रहे है - क्यों जी रहे है पता नहीं क्यों मर रहे हैं पता नहीं
प्रायः सबकी फितरत ऐसी, ख्वाब सुनहरे सजते हैं।
गीत गजल लिखते रहते पर, बातें दिल में रही अधूरी।।
ज़िन्दगी का darshan koot koot कर bhara है इस रचना में..............लाजवाब
बहुत हीं भाव प्रधान रचना.
प्रायः सबकी फितरत ऐसी, ख्वाब सुनहरे सजते हैं।
गीत गजल लिखते रहते पर, बातें दिल में रही अधूरी।।
Bahut Sunder..
Bahut Sahi
Bahut Sadhuwad ke Suman
प्रायः सबकी फितरत ऐसी, ख्वाब सुनहरे सजते हैं।
गीत गजल लिखते रहते पर, बातें दिल में रही अधूरी।।
Bahut Sunder..
Bahut Sahi
Bahut Sadhuwad ke Suman
श्यामल जी
चिरंजीव भवः
प्रायः सबकी फितरत ऐसी, ख्वाब सुनहरे सजते हैं।
गीत गजल लिखते रहते पर, बातें दिल में रही अधूरी।।
...बहुत सुंदर
अलख जलाते रहें
धन्यवाद के साथ
आपकी गुड्डो दादी चिकागो सेऔर देखें
Post a Comment