कोई अर्श पे कोई फर्श पे, ये तुम्हारी दुनिया अजीब है
कहते इसे कोई कर्मफल, कोई कह रहा कि नसीब है
यदि है नसीब तो इस कदर, तूने क्यों लिखा ऐ मेरे खुदा
समदर्शिता छूटी कहाँ, क्यों अमीर कोई गरीब है
कहते कि जग का पिता है तू, सारे कर्म तेरे अधीन हैं
नफरत की ये दीवारें क्यों, अपना भी लगता रकीब है
कण कण में बसते हो सुना, आधार हो हर ज्ञान का
कोई फिर भला कोई क्यों बुरा, तू ही जबकि सबके करीब है
जीने का हक़ सबको मिले, ख़ुद भी जीए जीने भी दे
काँटों से कोई न दुश्मनी, मिले सुमन सबको हबीब है
कहते इसे कोई कर्मफल, कोई कह रहा कि नसीब है
यदि है नसीब तो इस कदर, तूने क्यों लिखा ऐ मेरे खुदा
समदर्शिता छूटी कहाँ, क्यों अमीर कोई गरीब है
कहते कि जग का पिता है तू, सारे कर्म तेरे अधीन हैं
नफरत की ये दीवारें क्यों, अपना भी लगता रकीब है
कण कण में बसते हो सुना, आधार हो हर ज्ञान का
कोई फिर भला कोई क्यों बुरा, तू ही जबकि सबके करीब है
जीने का हक़ सबको मिले, ख़ुद भी जीए जीने भी दे
काँटों से कोई न दुश्मनी, मिले सुमन सबको हबीब है
33 comments:
यदि है नसीब तो इस कदर, तूने क्यों लिखा ऐ मेरे खुदा
समदर्शिता छूटी कहाँ, क्यों अमीर कोई गरीब है
bahut khoob suman ji, uchit prashn hai, lajawaab.
बहुत खुब, लाजवाब रचना
कोई अर्श पे कोई फर्श पे ---
यह शिकायती लहज़ा और फिर अपनी ख्वाहिश की अभिव्यक्ति बहुत खूब
बेहतरीन
वाह !
बहुत उम्दा ........
उम्दा से भी उम्दा रचना.......
कहते कि जग का पिता है तू, सारे कर्म तेरे अधीन हैं।
नफरत की ये दीवारें क्यों, अपना भी लगता रकीब है॥
कण कण में बसते हो सुना, आधार हो हर ज्ञान का।
कोई फिर भला कोई क्यों बुरा, तू ही जबकि सबके करीब है॥
वाह
वाह !
बधाई !
यदि है नसीब तो इस कदर, तूने क्यों लिखा ऐ मेरे खुदा
समदर्शिता छूटी कहाँ, क्यों अमीर कोई गरीब है
आप ने तो हर आदमी के दिल की बात अपने शेरो मै लिख दी.
बहुत खुब
धन्यवाद
सुंदर रचना, बधाई!
आज की स्थिती को बहुत ही सुन्दरता से उकेरा है आपने. अच्छी रचना के लिये बढाई.
जीने का हक सबको है, कहीं से भी पक्षपात के खिलाफ आगे आना होगा । रचना.. बेहतरीन..! आभार ।
"जीने का हक़ सबको मिले, ख़ुद भी जीए जीने भी दे।
काँटों से न कोई दुश्मनी, मिले सुमन सबको हबीब है।।"
आदर्श स्थिति है यह । काश ! यह सबके अन्तर्मन की निधि बने ।
जीने का हक़ सबको मिले..हुक्म की तामिल हो
बेहतरीन कविता ...शुभकामनायें ..!!
जीने का हक़ सबको मिले,
ख़ुद भी जीए जीने भी दे।
काँटों से न कोई दुश्मनी,
मिले सुमन सबको हबीब है।।
फूलों से दोस्ती है, ना काँटों से कुछ गिला।
जो कुछ लिखा नसीब में, वो ही तो है मिला।।
"waah suman sir hamare pass alfaz nahi hai aapki tarif karne ke liye bahut hi shandar rachana "
----- eksacchai {AAWAZ}
http://eksacchai.blogspot.com
सुमन जी नमस्कार.
आप की कवीता पढा सुन्दर भावो से ओत-प्रोत
पंकज
कण कण में बसते हो सुना, आधार हो हर ज्ञान का।
कोई फिर भला कोई क्यों बुरा, तू ही जबकि सबके करीब है॥
BAHOOT KHOOB .... LAJAWAAB LIKHA HAI AAPNE SUMAN JI ...
जिसे मिल गया वो कहता है कर्मफल है जिसे ना मिला उसके लिए नसीब है !
यदि है नसीब तो इस कदर, तूने क्यों लिखा ऐ मेरे खुदा
समदर्शिता छूटी कहाँ, क्यों अमीर कोई गरीब है
बहुत सुन्दर रचना.
सदैव की भांति अतिसुन्दर भाव और मोह लेने वाली अभिव्यक्ति...
सन्देश देती इस सुन्दर रचना को पढ़वाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार.
behtreen tarike se khuda se shikayat ki hai aur ye andaaz bahut hi pasand aaya.
यदि है नसीब तो इस कदर, तूने क्यों लिखा ऐ मेरे खुदा
समदर्शिता छूटी कहाँ, क्यों अमीर कोई गरीब है
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यह मुझे भी लगता है। पर फिर लगता है जगत विविधता का ही नाम है।
बड़भागी श्यामल सुमन मिला स्नेह अविराम।
दूर चला मै सात दिन बैद्यनाथ के धाम।।
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी इस लाजवाब रचना के लिए बधाई!
मेरे इस नए ब्लॉग पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
प्रार्थना के शिल्प मे यह गज़ल अच्छी है । थोडे शब्द इधर उधर करने होगे देखियेगा ।
गीत में लहरों सी गति है बहुत भावः पूर्ण अभिवयक्ति in prashno ke javab milte nahin .
Bahut sunder rachna.
Jo kiya tha wahee to hai bhar raha fir rota kyun, "kya naseeb hai
Us khuda se na kar koee gila, wo to sabke hee kareeb hai.
"...तूने क्यों लिखा अए खुदा ...?" कौन दे पाया इसका जवाब?
जीने का हक़ सबको मिले,
ख़ुद भी जीए जीने भी दे।
काँटों से न कोई दुश्मनी,
मिले सुमन सबको हबीब है।
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति है। काश कि हर इन्सान ऐसा ही सोचने लगे बधाई इस रचना के लिये
जीने का हक़ सबको मिले,
ख़ुद भी जीए जीने भी दे।
काँटों से न कोई दुश्मनी,
मिले सुमन सबको हबीब है।
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति है। काश कि हर इन्सान ऐसा ही सोचने लगे बधाई इस रचना के लिये
बहुत सुंदर रचना है .. बहुत बहुत बधाई आपको !!
यदि है नसीब तो इस कदर, तूने क्यों लिखा ऐ मेरे खुदा
समदर्शिता छूटी कहाँ, क्यों अमीर कोई गरीब ह
ak shashvat sval jo ki har svedansheel insan ke bheetar hai .
sundar abhivykti .
abhar
excellent.
mujhe pasand aayi aapki kavita.
thanks.
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
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00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
सुन्दर रचना |
इश्वर ने तो प्रकृति के संतुलन के लिए जंगल, नदी, पक्षी ... सब दिए अब मनुष्य इतना लालची हो गया की सबको ख़तम कर बस अपना देखना चाहता है |
यदि है नसीब तो इस कदर, तूने क्यों लिखा ऐ मेरे खुदा
समदर्शिता छूटी कहाँ, क्यों अमीर कोई गरीब है
उसकी बात बस वही जाने
लेकिन अगर असुंदर न हो
तो फिर सुन्दर को कौन माने ???
बहुत भावपूर्ण कविता...
कोई अर्श पे कोई फर्श पे, ये तुम्हारी दुनिया अजीब है
बहुत सुंदर रचना !!
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