Sunday, November 1, 2009

शरद-स्वरूप

शरद सुहावन उसी का होता जिसके तन पर कपड़ा हो।
वो कैसे जीते हैं जिनको रोटी का भी लफड़ा हो।।

मनमोहक श्रृंगार धरा का फूलों की आयी बारात।
सूर्योदय हो काम पे जाऊँ इसी आस में कटती रात।।

प्रथम किरण संग ओस घास पर मोती जैसा लगता है।
इक धोती ही वस्त्र-रजाई यूँ जाड़े को ठगता है।।

रंग-बिरंगे परिधानों में मौज उड़ाने का मौसम।
एक लक्ष्य है उदर-भरण ही चिन्तित रहता है हरदम।।

ठंढ़ बढ़ी और खबरें चमकीं पढ़ते जो पढ़ने लायक।
बहुत बेखबर वही खबर से जो है खबरों का नायक।।

यह किस्मत की बात नहीं है कारक जर्जर तंत्र।
सर्वे भवन्तु सुखिनः का हम भूल गए क्यों मंत्र।।

ठिठुर रहा जनवाद आज क्यों पनप रहा क्यों जंगल-राज।
सत्यार्थी बन कलम उठायें बच सकती जनता की लाज।।

किसी तरह यह नहीं हुआ तो शरद आग उगलेगा।
सिसकेगी मानवता घर घर उपवन में सुमन जलेगा।।

17 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुमन जी बहुत सुन्दर कविता लगाई है।
श्री गुरू नानकदेव जयन्ती और
कार्तिक पूर्णिमा की बधाई!

शरद सुहानी लगती है,
जब कपड़े तल पर पूरे हों।
उलको बहुत सताती ठण्डक,
जिनके वस्त्र अधूरे हों।।

Yogesh Verma Swapn said...

bahut khoob suman ji bahut sunder chitran. badhaai.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बहुत सुंदर.

Unknown said...

जय हो आपकी !
बहुत ख़ूब.........

आपकी इन पंक्तियों

मनमोहक श्रृंगार धरा का फूलों की आयी बारात।
सूर्योदय हो काम पे जाऊँ इसी आस में कटती रात।।

पर मुझे मेरे वरिष्ठ कवि जनकराज पारीक का यह शे'र याद आ गया जो एक मजदूरन भोर होने पर अपने मजदूर पति से कहती है :

पूर्व फूटी लालिमा , रात रही कम
काम की तलाश में चलो चलें सनम

_________आनन्द आ गया.......

बधाई !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

शरद सुहावन उसी का होता जिसके तन पर कपड़ा हो।
वो कैसे जीता है जिनको रोटी का भी लफड़ा हो।।

एकदम सटीक बात !

समय चक्र said...

बहुत ही भावुक कर देने वाली रचना .आभार

M VERMA said...

यह किस्मत की बात नहीं है कारक जर्जर तंत्र।
सर्वे भवन्तु सुखिनः का हम भूल गए क्यों मंत्र।।
वाह -- वाह क्या कहने. कितना करीबी रचना लिखा है आज आपने. बिलकुल यथार्थ

vandana gupta said...

bahut hi satik chitran.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढ़िया रचना है। एक निर्धन की शरद कैसी होती है...बखूबी शब्दों मे उतारा है।अच्छी रचना है।बधाई।

शरद सुहावन उसी का होता जिसके तन पर कपड़ा हो।
वो कैसे जीता है जिनको रोटी का भी लफड़ा हो।।

नीरज गोस्वामी said...

मनमोहक श्रृंगार धरा का फूलों की आयी बारात।
सूर्योदय हो काम पे जाऊँ इसी आस में कटती रात

शरद ऋतु पर ग़ज़ब की रचना...बहुत बहुत बधाई...सुमन जी
नीरज

संजय भास्‍कर said...

सुमन जी बहुत सुन्दर कविता लगाई है।
श्री गुरू नानकदेव जयन्ती और
कार्तिक पूर्णिमा की बधाई!

प्रज्ञा पांडेय said...

किसी तरह यह नहीं हुआ तो शरद आग उगलेगा।
सिसकेगी मानवता घर घर उपवन में सुमन जलेगा।। bahut marmsparshi rachana hai . sarhaara ki chinta se vyapt kavita bahut achchhi lagi .

विनोद कुमार पांडेय said...

बहुत बढ़िया बात कह गये आपने कविता कविता में..
हर पंक्ति जोरदार..एक संदेश देती हुई कविता..बहुत बहुत बधाई!!!

श्यामल सुमन said...

यह रचना उन दिनों की है जब मैं कविता लिखना सीख रहा था और इसे पोस्ट करने के पहले कई बार सोचा कि पोस्ट करूँ या न करूँ? आप सबका इतना समर्थन मिला यह मेरा सौभाग्य है। आप सब के प्रति हार्दिक आभार प्रेषित करना चाहता हूँ।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Udan Tashtari said...

शरद सुहावन उसी का होता जिसके तन पर कपड़ा हो।
वो कैसे जीता है जिनको रोटी का भी लफड़ा हो।।


-कितना सटीक यथार्थ चित्रण...शानदार प्रस्तुति! बधाई.

Satish Saxena said...

विचारणीय रचना ! शुभकामनायें !

Gyan Dutt Pandey said...

सर्दी सम्पन्न की ऋतु है!

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