दूर हुआ कर्तव्य से, अधिकारों का ज्ञान।
बना शिकारी आदमी, है शिकार इन्सान।।
मतलब की बातें हुईं, अब तो छोड़ो साथ।
बिना स्वार्थ के आजकल, कौन मिलाता हाथ।।
बाहर में सुख है कहाँ, ओछे कारोबार।
अपने अन्दर झाँकिये, बहुत सुखद संसार।।
दुख चेहरे पर क्यों दिखे, चिपकायी मुस्कान।
यह नकली मुस्कान क्या, रोक सके तूफान।।
हमें जानवर दे रहे, देखो कितनी सीख।
श्रम से हक पाते सदा, कभी न माँगे भीख।।
आम लोग ना खा सके, बाजारों से आम।
आम हुआ है खास अब, यह साजिश परिणाम।।
अमन चाहते हैं सभी, बागी होता कौन।
लेकिन जो हालात हैं, रहे सुमन क्यों मौन।।
बना शिकारी आदमी, है शिकार इन्सान।।
मतलब की बातें हुईं, अब तो छोड़ो साथ।
बिना स्वार्थ के आजकल, कौन मिलाता हाथ।।
बाहर में सुख है कहाँ, ओछे कारोबार।
अपने अन्दर झाँकिये, बहुत सुखद संसार।।
दुख चेहरे पर क्यों दिखे, चिपकायी मुस्कान।
यह नकली मुस्कान क्या, रोक सके तूफान।।
हमें जानवर दे रहे, देखो कितनी सीख।
श्रम से हक पाते सदा, कभी न माँगे भीख।।
आम लोग ना खा सके, बाजारों से आम।
आम हुआ है खास अब, यह साजिश परिणाम।।
अमन चाहते हैं सभी, बागी होता कौन।
लेकिन जो हालात हैं, रहे सुमन क्यों मौन।।
17 comments:
बाहर में सुख है कहाँ ओछे कारोबार।
अपने अन्दर झाँकिये बहुत सुखद संसार।।
Bahut Sundar !
nice
अमन चाहते हैं सभी बागी होता कौन।
लेकिन जो हालात हैं रहे सुमन क्यों मौन।।
रहे सुमन क्यों मौन बात कही है सच्ची
रक्षा करने वाले ही हो गये हैं रक्षा भक्षी
कह ललित कविराय साजिशों के दौर हैं अभी
कौन होना चाहे बागी,अमन चाहते हैं सभी
श्यामल जी
चिरंजीव भव:
चेहरे पर दुःख न दिखे चिपकाया मुस्कान
यह नकली मुस्कान क्या रोक सके तूफ़ान
इतनी गहराही भावुकता क्यों
होंठों को सी चुके तो ज़माने ने यह कहा
चुप सी क्यों लगी है कुछ तो बोलिए
बिना स्वार्थ के कौन मिलाता हाथ ...बढे हुए हाथों को देखकर कभी कभी सोच में पड़ जाते हैं हम भी ...मगर आशावादिता कायम रहती है फिर भी ...
अच्छी कविता ...!!
बस नाईस कह कर हाजरी ही लगवा रही हूँ। शुभकामनायें
अच्छी अभिव्यक्ति , ये सुमन जी के दोहे हैं , इंसानियत ही निशाने पर है |
अमन चाहते हैं सभी बागी होता कौन।
लेकिन जो हालात हैं रहे सुमन क्यों मौन।।
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
सुन्दर रचना...
सुन्दर भाव
हमें जानवर दे रहा देखो कितनी सीख।
श्रम से हक पाते सदा कभी न माँगे भीख।।
बेहतरीन अभिव्यक्ति!
हमें जानवर दे रहा देखो कितनी सीख।
श्रम से हक पाते सदा कभी न माँगे भीख।।
बहुत सुंदर् जी
सभी पद एक से बढ़कर एक अनमोल मोती..किसकी तारीफ करूँ किसे छोड़ दूँ....
मन आनंदित और सुखी हो गया भैया,इस अद्वितीय रचना को पढ़कर....
माँ शारदा सदा आपकी लेखनी पर ऐसे ही सहाय रहें...
बाहर में सुख है कहाँ ओछे कारोबार।
अपने अन्दर झाँकिये बहुत सुखद संसार।
--वाह!
सधी सच्ची बात मगर होती नहीं नहीं।
excellent,
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
shaymal ji namaskar deri se aane ke liye maafi chahunga .. aapki ye gazal padhkar man me bahut se khayalaat jaag rahe hai .. jeevan ki sacchayi ko aapne shabdo me darsha diya hai ...badhayi
aabhar
vijay
- pls read my new poem at my blog -www.poemsofvijay.blogspot.com
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