Thursday, June 3, 2010

ज़िंदगी

आग लग जाये जहाँ में फिर से फट जाये ज़मीं।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

आँधी आये या तूफ़ान बर्फ गिरे या फिर चट्टान।
उत्तरकाशी भुज लातूर वो सूनामी अब जापान।।
मौत का ताण्डव रौद्र रूप में फँसी ज़िंदगी अंधकूप में।
लाख झमेले आने पर भी बढ़ी ज़िंदगी छाँव धूप में।।

दहशतों के बीच चलकर खिल उठी है ज़िंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

कुदरत के इस कहर को देखो और प्रलय की लहर को देखो।
हम विकास के नाम पे पीते धीमा धीमा ज़हर तो देखो।।
प्रकृति को हमने क्यों छेड़ा इस कारण ही मिला थपेड़ा।
नियति नियम को भंग करेंगे रोज़ बढ़ेगा और बखेड़ा।।

लक्ष्य नियति के साथ चलना और सजाना ज़िंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

युद्धों की एक अलग कहानी बच्चे बूढ़े मरी जवानी।
कुरुक्षेत्र से आजतलक तो रक्तपात की शेष निशानी।।
स्वार्थ घना जब जब होता है जीवन मूल्य तभी खोता है।
करुणभाव से मुक्त हृदय भी विपदा में संग संग रोता है।।

साथ मिलकर जब बढ़ेंगे दूर होगी गंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

जीवन है चलने का नाम रुकने से नहीं बनता काम।
एक की मौत कहीं आ जाये दूजा झंडा लेते थाम।।
हाहाकार से लड़ना होगा किलकारी से भरना होगा।
सुमन चाहिए अगर आपको काँटों बीच गुज़रना होगा।।

प्यार करे मानव मानव को यही करें मिल बंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

35 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

आग लग जाये जहाँ में फिर से फट जाये ज़मीं।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

पहली लाइन से अंत तक बँधे रखनी वाली अत्यन्त भावपूर्ण कविता ..आत्मविश्वास बढ़ती और प्रेरणा से ओत-प्रोत सुंदर कविता के लिए बधाई सुमन जी

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

युद्धों की एक अलग कहानी बच्चे बूढ़े मरी जवानी।
कुरुक्षेत्र से अब इराक़ तक रक्तपात की शेष निशानी।।
स्वार्थ घना जब जब होता है जीवन मूल्य तभी खोता है।
करुणभाव से मुक्त हृदय भी विपदा में संग संग रोता है।


बहुत संवेदनशील रचना ....

गुड्डोदादी said...

श्यामल
सदा सुखी रहो
कितना सच लिखा सारी रचना में
मौत हारी है हमेशा जिंदगी रूकती नहीं

मौत का ताण्डव रौद्र रूप में फसी जिंदगी अंधकूप में
आगे नहीं लिख सकती मेरे भारत भू का जनगण परिवार इतने कष्टों में
बारूद के ढेर पे बैठी है दुनियाँ

गुड्डोदादी said...

तेरी दुनियां में रह रहे हैं
सहने की हिम्मत कर रहे हैं
जिंदगी चार दिन की दी है
गमों और प्रकति के थापेडे झेल रहे हैं
बगावत भी नहीं कर सकते
शायद इसी का नाम है संघर्ष
कोई तो बताये किसे मिला उत्कर्ष

honesty project democracy said...

कुदरत के इस कहर को देखो और प्रलय की लहर को देखो।
हम विकास के नाम पे पीते धीमा धीमा ज़हर तो देखो।।
प्रकृति को हमने क्यों छेड़ा इस कारण ही मिला थपेड़ा।
नियति नियम को भंग करेंगे रोज़ बढ़ेगा और बखेड़ा।।
बहुत सुन्दर और विचारणीय प्रस्तुती ,ऐसे ही पोस्ट से ब्लॉग की सार्थकता बरक़रार है ....

दिलीप said...

युद्धों की एक अलग कहानी बच्चे बूढ़े मरी जवानी।
कुरुक्षेत्र से अब इराक़ तक रक्तपात की शेष निशानी।।
स्वार्थ घना जब जब होता है जीवन मूल्य तभी खोता है।
करुणभाव से मुक्त हृदय भी विपदा में संग संग रोता है।। badhiya bahut khoob...

Anamikaghatak said...

hridayasoarshi kavita

kshama said...

साथ मिलकर जब बढ़ेंगे दूर होगी गंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
Sach! Saath milkar na chalen to beda paar na ho!

M VERMA said...

साथ मिलकर जब बढ़ेंगे दूर होगी गंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
बहुत बडा सच है ये
सुन्दर

स्वाति said...

कुदरत के इस कहर को देखो और प्रलय की लहर को देखो।
हम विकास के नाम पे पीते धीमा धीमा ज़हर तो देखो।।
प्रकृति को हमने क्यों छेड़ा इस कारण ही मिला थपेड़ा।
विचारणीय पोस्ट,सुंदर प्रस्तुती..

प्रवीण पाण्डेय said...

कहो मौत से,थोड़ी प्रतीक्षा करे,
साहब जिन्दगी में व्यस्त हैं ।

Unknown said...

क्या बात है श्यामल सुमन जी !

बहुत ही श्रेष्ठ गीत !

अत्यंत सार्थक रचना...........

कविता रावत said...

जीवन है चलने का नाम रुकने से नहीं बनता काम।
एक की मौत कहीं आ जाये दूजा झंडा लेते थाम।।
हाहाकार से लड़ना होगा किलकारी से भरना होगा।
सुमन चाहिए अगर आपको काँटों बीच गुज़रना होगा।।
प्यार करे मानव मानव को यही करें मिल बंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
....bahut gahre ahsas...
..Pyarbhare manaviya sandesh deti aapki ye pankiyon bahut achhi aur sachhi lagi..
Haardik shubhkamnayne

डॉ टी एस दराल said...

स्वार्थ घना जब जब होता है जीवन मूल्य तभी खोता है।
करुणभाव से मुक्त हृदय भी विपदा में संग संग रोता है।।

अच्छा है । आज बहुत सी बातें कह दी , सुमन जी । बढ़िया ।

shikha varshney said...

हाहाकार से लड़ना होगा किलकारी से भरना होगा।
सुमन चाहिए अगर आपको काँटों बीच गुज़रना होगा।।
कितनी सुन्दर बात कही है ..हाहाकार कि नहीं किलकारी की जरुरत है ..
बहुत ही संवेदनशील रचना है सीधे दिल पर दस्तक देती है.

राज भाटिय़ा said...

एक संवेदनशील कविता. बहुत अच्छी लगी, धन्यवाद

Kumar Jaljala said...

फिल्म- देशप्रेमी
गीत-महाकवि आनन्द बख्शी
संगीत- लक्ष्मीकांत- प्यारेलाल
नफरत की लाठी तोड़ो
लालच का खंजर फेंको
जिद के पीछे मत दौड़ो
तुम देश के पंछी हो देश प्रेमियों
आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों
देखो ये धरती.... हम सबकी माता है
सोचो, आपस में क्या अपना नाता है
हम आपस में लड़ बैठे तो देश को कौन संभालेगा
कोई बाहर वाला अपने घर से हमें निकालेगा
दीवानों होश करो..... मेरे देश प्रेमियों आपस में प्रेम करो

मीठे पानी में ये जहर न तुम घोलो
जब भी बोलो, ये सोचके तुम बोलो
भर जाता है गहरा घाव, जो बनता है गोली से
पर वो घाव नहीं भरता, जो बना हो कड़वी बोली से
दो मीठे बोल कहो, मेरे देशप्रेमियों....

तोड़ो दीवारें ये चार दिशाओं की
रोको मत राहें, इन मस्त हवाओं की
पूरब-पश्चिम- उत्तर- दक्षिण का क्या मतलब है
इस माटी से पूछो, क्या भाषा क्या इसका मजहब है
फिर मुझसे बात करो
ब्लागप्रेमियों... आपस में प्रेम करो

Udan Tashtari said...

एक शब्द: जबरदस्त!!


आनन्द आ गया पढ़कर.

Udan Tashtari said...

ऐसी संवेदनशील रचनाओं में इस तरह का प्रवाह..कभी पढ़कर पॉडकास्ट करें.

एक बेहद साधारण पाठक said...

संवेदनशील रचना ....

वाणी गीत said...

मौत हारी है हमेशा जिंदगी रूकती नहीं ...
यही आशावादी दृष्टिकोण रोके रखता है ज़माने के रंजो गम से दूर ...!!

चन्द्र कुमार सोनी said...

वाह वाह !!!!!
वाह वाह !!!!!

अब इससे ज्यादा क्या तारीफ़ करूँ????
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Yogesh Sharma said...

Shyamal bhai..ati sundar rachnaa

श्यामल सुमन said...

आभार
कृपया स्नेह बनाये रक्खें

योगेन्द्र मौदगिल said...

Wahwa..Suman ji..wah

Urmi said...

बहुत ही सुंदर, शानदार और संवेदनशील रचना है! पढ़कर बहुत अच्छा लगा!

Sadhana Vaid said...

यही ज़िंदगी की विशेषता है कि यह कभी खत्म नहीं होती ! प्राकृतिक आपदा हो, युद्ध की विभीषिका हो, कोई दुर्घटना हो, या कोई आतंकवादी हमला हो हज़ारों जानें जाने बाद भी ज़िंदगी वहीं पर उतनी ही मासूमियत और शिद्दत के साथ मुस्कराती दिखाई देती है ! सुन्दर कविता के लिए आभार !

http://sudhinama.blogspot.com
http://sadhanavaid.blogspot.com

स्वप्निल तिवारी said...

bilkul sahi kahaa aapne sabhyataayen bar bar khatm ho kar khadi hueen ..kyunki zindagi rukti nahi .. achhi rachna

पंकज मिश्रा said...

पहली ही लाइनों ने ऐसा जादू किया कि अंत तक रुक ही नहीं सका। वाह क्या कहने। यही तो आपकी विशेषता है साहब। श्यामल जी बधाई।
http://udbhavna.blogspot.com/

रंजना said...

जितनी सुन्दर रचना उतना ही महत्तम सन्देश....
बहुत बहुत सुन्दर...कल्याणकारी...

Asha Joglekar said...

स्वार्थ घना जब जब होता है जीवन मूल्य तभी खोता है।
करुणभाव से मुक्त हृदय भी विपदा में संग संग रोता है।।

साथ मिलकर जब बढ़ेंगे दूर होगी गंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

Asha ka bhaw jagati huee sunder kawita aapne sahee kaha hai maut hee harati hai jindagi fir bhee khilkhilati hai.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत ही ओजपूर्ण रचना। बहुत बहुत बधाई।
--------
ब्लॉगवाणी माहौल खराब कर रहा है?

Mumukshh Ki Rachanain said...

साथ मिलकर जब बढ़ेंगे दूर होगी गंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

समय के उतर चढाव का ही दूसरा नाम जिंदगी है
सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक आभार

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर

निर्मला कपिला said...

आँधी आये या तूफ़ान बर्फ गिरे या फिर चट्टान।
उत्तरकाशी भुज लातूर सुनामी और पाकिस्तान।।
मौत का ताण्डव रौद्र रूप में फँसी ज़िंदगी अंधकूप में।
लाख झमेले आने पर भी बढ़ी ज़िंदगी छाँव धूप में।।
बहुत भावमय कविता है जीने की प्रेरना देती हुयी । बधाई और आभार

कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान said...

उम्दा संदेश दिया है ,बधाई

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