आती याद बहुत बचपन की।
उमर हुई है जब पचपन की।।
बरगद, पीपल, छोटा पाखर।
जहाँ बैठकर सीखा आखर।।
संभव न था बिजली मिलना।
बहुत सुखद पत्तों का हिलना।।
नहीं बेंच, था फर्श भी कच्चा।
खुशी खुशी पढ़ता था बच्चा।।
खेल कूद और रगड़म रगड़ा।
जो प्यारा था उसी से झगड़ा।।
बोझ नहीं था सर पर कोई।
पुलकित मन रूई की लोई।।
हर बालू-घर होता अपना।
शेष अभीतक घर का सपना।।
रोज बदलता मौसम जैसे।
क्यों न आता बचपन वैसे।।
बचपन की यादों में खोया।
सु-मन सुमन का फिर से रोया।।
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34 comments:
बचपन की वीथियों में बरबस खींच कर ले जाती बहुत प्यारी रचना ! ना जाने कितने चिर परिचित दृश्य आँखों के आगे चलचित्र की तरह घूम गए ! सुन्दर रचना के लिए आभार !
वो बड़े ही अनमोल दिन होते है उन दिनों को ताउम्र भुला नही जा सकता...बचपन सबसे अनोखे पल होते है..एक सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई
बहुत प्यारी कविता, भूला बचपन याद दिलाने वाली ।
बचपन के स्मरण पर अच्छा लिखा ।
bahut khoob...
श्यामल जी
सदा सुखी रहो
बहुत याद आती बचपन की
जब करीब पहुंचा पचपन की
बचपन की यादों में खोया
सु-मन सुमन फिर से रोया
बहुत ही भावपूर्ण अश्रु आ गए
खोया बचपन गई जवानी मगर बुढ़ापा तरसाता है
दादी तो ७२ उम्र में नाती पोती के साथ हो हल्ला बचपन वाला
श्यामल
बचपन की कविता पढ़ कर यही मुख से निकला
कहाँ ले गए सितारों से आगे
नहीं बेंच था फर्श भी कच्चा।
खुशी खुशी पढ़ता था बच्चा।।
भावुक कर दिया आपने । मुझे मेरा बचपन याद दिला दिया ।
बचपने की यादें कभी दिल से जाती नही। बहुत सुन्दर कविता है बधाई आपको।
रोज बदलता मौसम जैसे।
क्यों न आता बचपन वैसे।।
बहुत खूब।
यही तो बचपन की यादें हैं।
बचपन को याद करने से ज्यादा बेहतर हैं कि-"हम अभी से अपनी उम्र, अपने पद, अपने ओहदों को भूलाकर लाइफ को एन्जॉय करे. बचपन को जीने की कोई निश्चित उम्र नहीं होती हैं, बचपन को कभी भी जिया जा सकता हैं."
बहुत बढ़िया.
धन्यवाद.
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bachpan kee yaaden aur mann chanchal
रोज बदलता मौसम जैसे।
क्यों न आता बचपन वैसे।।
बचपन की यादों में खोया।
सु-मन सुमन का फिर से रोया।।
Aah! kayiyon ke man ki baat chheen lee hai aapne!
इस कविता को पढ़कर एक भावनात्मक राहत मिलती है।
आपकी कविता पढ़ने पर ऐसा लगा कि आप बहुत सूक्ष्मता से एक अलग धरातल पर चीज़ों को देखते हैं।
SUMAN JI ''koi lauta de mere din bachpan'ke'...pyari avm nyari sunder rchna..badhayee
नहीं बेंच, था फर्श भी कच्चा।
खुशी खुशी पढ़ता था बच्चा।।
सच है. आज बच्चों पर इतना बोझ है, कि वो खुशी-खुशी तो नहीं ही पढता है. सुन्दर कविता.
बचपन में मन लौटा ऐसे।
कल से उम्र कटेगी कैसे।।
बहुत अच्छी कविता, बचपन का सब कुछ याद आ गया।
आदरणीय
बहुत बहुत धन्यवाद
टिप्पणी के लिए
कृपया स्नेह बनाये रक्खें
क्या कहें? इतनी बढ़िया रचना है. वाह!
बचपन की याद आ है. पटरी लेकर स्कूल जाते थे. साथ में झोला और बोरा. महुआ के पेड़ के नीचे बैठते थे. इतनी मेहनत करके भी पढ़ लेते थे. बहुत ही सुन्दर.
Beautiful....
बचपन की यादों में खोया।
सु-मन सुमन का फिर से रोया
..इस कविता की मासूमियत पर फ़िदा हो गया हूँ.
बालू का घर होता अपना।
घर का शेष अभीतक सपना।।
रोज बदलता मौसम जैसे।
क्यों न आता बचपन वैसे।।
सच्च बचपन को यूँ याद करना भी कितना सुखद लगता है न ......?
वो गजल है ना। बारिश का पानी। वही याद आ गई। क्या कहने बहुत शानदार रचना।
बचपन की यादों में खोया।
सु-मन सुमन का फिर से रोया।।
अब इन पंक्तियों की क्या कहूँ....
लाजवाब रचना...बहुत बहुत सुन्दर....
बहुत प्यारी -सुन्दर रचना..
APKI IS KAVITA NE TO BACHAPAN KI YAD DILA KE RULA DIYA.
SPLENDED..............
आपकी पढते हुए मुझे अपना बचपन याद आ गया।
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क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।
क्या बात है जी सभी बचपन को नही भुल पाते, बहुत सुंदर लिखा आप ने धन्यवाद
नहीं बेंच, था फर्श भी कच्चा।
खुशी खुशी पढ़ता था बच्चा।।
सुन्दर दृश्य खीचा है
बहुत सुन्दर ... मनोरम रचना
बचपन की बयार में बहा दिया आपने अमराई पीपल झाकर झाकर बहती हवा क्या नहीं याद आ गया ...बहुत मधुर . बधाई
बहुत खूब...
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