जो रचनाएँ थी प्रायोजित उसे मैं लिख नहीं पाया
स्वतः अन्तर से जो फूटा उसे बस प्रेम से गाया
थी शब्दों की कभी किल्लत न भावों से वहाँ संगम,
दिशाओं और फिजाओं से कई शब्दों को चुन लाया
किया कोशिश कि सीखूँ मैं कला खुद को समझने की
कठिन है यक्ष-प्रश्नों सा है बारी अब उलझने की
घटा अज्ञान की मानस पटल पर छा गयी है यूँ,
बँधी आशा भुवन पर ज्ञान की बारिश बरसने की
बहुत मशहूर होने पर हुआ मगरूर मैं यारो
नहीं पूरे हुए सपने हुआ मजबूर मैं यारो
वो अपने बन गए जिनसे कभी रिश्ता नहीं लेकिन,
यही चक्कर था अपनों से हुआ हूँ दूर मैं यारो
अकेले रह नहीं सकते पड़ोसी की जरूरत है
अगर अच्छे मिलें तो मान लें गौहर की मूरत है
पड़ोसी के किसी भी हादसे को जानते हैं लोग,
सुबह अखबार में पढ़ते बनी अब ऐसी सूरत है
बिजलियाँ गिर रहीं घर पे न बिजली घर तलक आयी
बनाते घर हजारों जो उसी ने छत नहीं पायी
है कैसा दौर मँहगीं मुर्गियाँ हैं आदमी से अब,
करे मेहनत उसी ने पेट भर रोटी नहीं खायी
हकीकत से दुखी प्रायः यही जीवन-कहानी है
नहीं मुस्कान चेहरों पे उसी की ये निशानी है
चमन में है कभी पतझड़ कभी ऋतुराज आयेगा,
सुमन की दोस्ती काँटों से तो सदियों पुरानी है
स्वतः अन्तर से जो फूटा उसे बस प्रेम से गाया
थी शब्दों की कभी किल्लत न भावों से वहाँ संगम,
दिशाओं और फिजाओं से कई शब्दों को चुन लाया
किया कोशिश कि सीखूँ मैं कला खुद को समझने की
कठिन है यक्ष-प्रश्नों सा है बारी अब उलझने की
घटा अज्ञान की मानस पटल पर छा गयी है यूँ,
बँधी आशा भुवन पर ज्ञान की बारिश बरसने की
बहुत मशहूर होने पर हुआ मगरूर मैं यारो
नहीं पूरे हुए सपने हुआ मजबूर मैं यारो
वो अपने बन गए जिनसे कभी रिश्ता नहीं लेकिन,
यही चक्कर था अपनों से हुआ हूँ दूर मैं यारो
अकेले रह नहीं सकते पड़ोसी की जरूरत है
अगर अच्छे मिलें तो मान लें गौहर की मूरत है
पड़ोसी के किसी भी हादसे को जानते हैं लोग,
सुबह अखबार में पढ़ते बनी अब ऐसी सूरत है
बिजलियाँ गिर रहीं घर पे न बिजली घर तलक आयी
बनाते घर हजारों जो उसी ने छत नहीं पायी
है कैसा दौर मँहगीं मुर्गियाँ हैं आदमी से अब,
करे मेहनत उसी ने पेट भर रोटी नहीं खायी
हकीकत से दुखी प्रायः यही जीवन-कहानी है
नहीं मुस्कान चेहरों पे उसी की ये निशानी है
चमन में है कभी पतझड़ कभी ऋतुराज आयेगा,
सुमन की दोस्ती काँटों से तो सदियों पुरानी है
19 comments:
जो रचनाएँ थी प्रायोजित उसे मैं लिख नहीं पाया
स्वतः अन्तर से जो फूटा उसे बस प्रेम से गाया
थी शब्दों की कभी किल्लत न भावों से वहाँ संगम,
दिशाओं और फिजाओं से कई शब्दों को चुन लाया
bahut hi badhiyaa
आप एक श्रेष्ठ कवि हैं!
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
है कैसा दौर मँहगीं मुर्गियाँ हैं आदमी से अब,
करे मेहनत उसी ने पेट भर रोटी नहीं खायी
कठोर सत्य को उजागर किया है।
अब तो मंहगाई को ही खाना पड़ रहा है।
देश को दोनो हाथों से लूट रहा है भ्रष्टाचार का दानव।
मुर्गियों से भी सस्ता हो गया है आज का मानव
बहुत सुंदर भावाअभिव्यक्ति सुमन जी
आभार
बिजलियाँ गिर रहीं घर पे न बिजली घर तलक आयी
बनाते घर हजारों जो उसी ने छत नहीं पायी
है कैसा दौर मँहगीं मुर्गियाँ हैं आदमी से अब,
करे मेहनत उसी ने पेट भर रोटी नहीं खायी
अद्भुत!!!
अत्यंत ही प्रभावशाली और दिल में बस जाने वाली रचना.
श्यामल जी (गुदरी का लाल )
चिरंजीव भवः
जो रचनाएँ थी प्रायोजित उसे मै लिख नहीं पाया
स्वत:अन्तर से जो फूटा उसे बस प्रेम से गाया
यही शब्द निकले
मेरा प्यार मुझे लौटा दो
मै जीवन में उलझ गया हूँ
तुम जीना सिखला दो
फिर आपने लिखा
वो अपने बन गए जिनसे कभी रिश्ता नहीं लेकिन ,
यही चक्कर था अपनों से दूर हुआ मै यारों
बहुत भावुक कवि है आप
बिजलियाँ गिर रहीं घर पे न बिजली घर तलक आयी
बनाते घर हजारों जो उसी ने छत नहीं पायी
है कैसा दौर मँहगीं मुर्गियाँ हैं आदमी से अब,
करे मेहनत उसी ने पेट भर रोटी नहीं खायी
बहुत खुब सुरत जी, हम किन शव्दो मै तारीफ़ करे, आप की रचनाओ के सामने हमारे तारीफ़ के शव्द भी छोटे पडते है, धन्यवाद
विसंगतियों को सार्थक और मुखर शब्द दिए हैं आपने...
मन को छूती अतिसुन्दर कविता...
बेहद उम्दा रचना , बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
बहुत खूब श्यामल जी ....सच ही है कि आपको आंकने की कूव्वत अभी हममें नहीं हैं , इसलिए आपको पढ कर स्वाद लेने में ही अद्भुत जो आनंद आता है वही उठाते हैं । शुभकामनाएं ...बहुत बहुत ..
वो अपने बन गए जिनसे कभी रिश्ता नहीं लेकिन,
यही चक्कर था अपनों से हुआ हूँ दूर मैं यारो
जिंदगी में रिश्ते नाते यूँ ही बदलते रहते हैं ।
सही कहा , पड़ोसी अच्छा हो तो अपनों की कमी नहीं खलती ।
बढ़िया रचना ।
काटों से दोस्ती में फूलों की जलन,
सह लिया जाये, जब यही है चलन।
सामल
सीसा देउऊँ
आसिर्वाद
ईब चार बार यो कविता बाच ली
घटा अज्ञान की मानस पटल पर छा गई है यूं,
बँधी आशा भुवन पर ज्ञान की बारिश बरसने की
आपकी कविता पढ़ कर बादल तो बरसे नहीं
आँखों के आसूयों की बाढ़ आ गई डूब ना जायूं साहिल की खोज में हूँ
शुभ कामनाऐ
अच्छी हकीकत बयान की हैं आपने.
बहुत अच्छा.
धन्यवाद.
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purnatah hakikat liye behad prabhavshali avam sarthak rachna.
poonam
Amiable post and this enter helped me alot in my college assignement. Thank you on your information.
बहुत मशहूर होने पर हुआ मगरूर मैं यारो
नहीं पूरे हुए सपने हुआ मजबूर मैं यारो
वो अपने बन गए जिनसे कभी रिश्ता नहीं लेकिन,
यही चक्कर था अपनों से हुआ हूँ दूर मैं यारो
सुमन जी ...जब भी आपको पढता हूँ बस यही गीत याद आता है
हुस्न-ए-जाना की तारीफ़ मुमकिन नही
आपके गीतों की तारीफ़ भी मुमकिन नही
बहुत खूब! आप बहुत अच्चा लिखते हो
बहुत खूब! आप बहुत अच्छा लिखते हो
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