कुछ भी नया नहीं दिखता पर नये साल का शोर क्यों?
बहुत दूर सत - संकल्पों से है मदिरा पर जोर क्यों?
हरएक साल सब करे कामना हो समाज मानव जैसा
दीप जलाते ही रहते पर तिमिर यहाँ घनघोर क्यों?
अच्छाई है लोकतंत्र में सुना है जितने तंत्र हुए
जो चुनते हैं सरकारों को आज वही कमजोर क्यों?
सारे जग से हम बेहतर हैं धरम न्याय उपदेश में
लेकिन मौलिक प्रश्न सामने घर घर रिश्वतखोर क्यों?
जब से होश सम्भाला देखा सब कुछ उल्टा पुल्टा है
अँधियारे में चकाचौंध और थकी थकी सी भोर क्यों?
धूप चाँदनी उसके वश में जो कुबेर बन बैठे हैं
जेल संत को भेज दिया पर मंदिर में है चोर क्यों
है जीवन की यही हकीकत नये साल के सामने
भाव सृजन का नूतन लेकर सुमन आँख में नोर क्यों?
Friday, December 31, 2010
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27 comments:
सर्वस्तरतु दुर्गाणि सर्वो भद्राणि पश्यतु।
सर्वः कामानवाप्नोतु सर्वः सर्वत्र नन्दतु॥
सब लोग कठिनाइयों को पार करें। सब लोग कल्याण को देखें। सब लोग अपनी इच्छित वस्तुओं को प्राप्त करें। सब लोग सर्वत्र आनन्दित हों
सर्वSपि सुखिनः संतु सर्वे संतु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्॥
सभी सुखी हों। सब नीरोग हों। सब मंगलों का दर्शन करें। कोई भी दुखी न हो।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं!
साल ग्यारह आ गया है!
आपको और आपके परिवार को मेरी और से नव वर्ष की बहुत शुभकामनाये ..
आपको और आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये ......
आपको तथा आपके पूरे परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनाएँ!
इस सार्थक रचना के साथ आपको सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ।
वर्ष नया हो,
सब दुख, अब अपने घर जायें,
हर्ष, दया हो।
बहुत सुंदर बात कही आप ने अपनी रचना मे धन्यवाद
नये वर्ष की असीम-अनन्त शुभकामनाएं.
हरएक साल सब करे कामना हो समाज मानव जैसा
दीप जलाते ही रहते पर अँधियारा घनघोर क्यों?
ना जाने ऐसा होता है क्यों
विचारों के दीपक बुझते है क्यों
समुद्र में पानी इतना प्यासा क्यों
नदियाँ नीर बहाती समुद्र में डूबती क्यों
आँख में नोर (?)
क्षमा करें, मुझे अर्थ समझ नहीं आया.
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
अनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
तय हो सफ़र इस नए बरस का
प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
सुवासित हो हर पल जीवन का
मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
शांति उल्लास की
आप पर और आपके प्रियजनो पर.
आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर,
डोरोथी.
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
बहुत अच्छी कविता है। बधाई।
आपको सपरिवार नये साल की हार्दिक शुभकामनायें।
काजल भाई - नये साल की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ कहना चाहता हूँ कि "नोर" शब्द का प्रयोग "आँसू" के लिए किया जाता रहा है और कहीं कहीं इसे "लोर" भी कहा जाता है। मुझे आपकी यह साफगोई बहुत पसन्द आई। यूँ ही स्नेह बनाये रखें।
सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
भाई सुमन जी,
आपका आभार :)
सार्थक सटीक रचना...
वर्ष को नया और उत्साहजनक तो तब माने न,जब एक एक आँख नोर से रिक्त रह पाए...
क्या ऐसा दिन कभी आएगा ???
कविता बार बार पढ़ी
गहराही के शब्दों में अटूट व्यथा
ना चाहते हुए भी यही शब्द
ऐ आँख अब ना रोना,रोना तो उम्र भर का है
पूरी कविता का यही सार समझ आया
हवा आग फूंक गई जला गया पानी ,
मन था ,फिर भी उन की बात नहीं मानी
बहुत सुन्दर गीत है .प्रस्तुति के लिए धन्यवाद...
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये ......
बहुत दूर सत - संकल्पों से है मदिरा पर जोर क्यों?
बहुत खूब लिखा है आपने. जन्मदिन की शुभकामनाओं के साथ-साथ अच्छी पोस्ट लिखने के लिए भी बधाई स्वीकार करे. हम दोनों में फर्क मात्र इतना है की आपने अपने दिल के भावो को शब्दों में पिरो कर कविता लिख दी और मै इन्ही शब्दों से गुफ्तगू करता हूँ. आपका भी मेरी गुफ्तगू में स्वागत है. मैंने भी नववर्ष पर कुछ खास गुफ्तगू की थी. आप भी पढ़िए.
http://gooftgu.blogspot.com/2010/12/blog-post_31.html
सुमन जी, जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।
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कादेरी भूत और उसका परिवार।
मासिक धर्म और उससे जुड़ी अवधारणाएं।
जब से होश सम्भाला देखा सब कुछ उल्टा पुल्टा है
अँधियारे में चकाचौंध और थकी थकी सी भोर क्यों?
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कह तो नहीं पता लेकिन पढने मैं अच्छा लगता है. आप का स्वागत है और यदि आप कुछ कहें समाज मैं अमन और शांति के लिए तो एहसान.
नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें ...देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ...आशा है आप स्वीकार करेंगे
बेहतरीन!
जब से होश सम्भाला देखा सब कुछ उल्टा पुल्टा है
अँधियारे में चकाचौंध और थकी थकी सी भोर क्यों?
है जीवन की यही हकीकत नये साल के सामने
सभी दुखी हैं
आप लिख कर अपना दुःख हल्का कर लेते हैं
हम आंसूयों में जीवन में भोर भी शोर भी है
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