Friday, January 4, 2013

नयी सुबह की आस


कोई मस्त है,
कोई पस्त है।
चेहरे पे शिकन तो देखो,
लगता बिल्कुल त्रस्त है।
मजे की बात यह कि
फिर भी हरदम व्यस्त है।
ठीक उसी तरह, जैसे,
नयी सुबह की आस जगाकर,
हर दिन सूरज होता अस्त है।

11 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

समय नियत दे सूर्योदय में, व्यर्थ किये पर हँसता वह।

शारदा अरोरा said...

sach kaha....vyst hai , ast hai...

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

ओ सुबह कभी तो आयेगी !

Rohitas Ghorela said...

वाह ...बेहतरीन पोस्ट

recent poem : मायने बदल गऐ

रविकर said...

शुभकामनायें-

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

प्रभावी उम्दा प्रस्तुति,,,,

recent post: वह सुनयना थी,

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत सुन्दर
नई पोस्ट :" अहंकार " http://kpk-vichar.blogspot.in

मेरा मन पंछी सा said...

अति सुन्दर रचना..
:-)

मेरा मन पंछी सा said...

अति सुन्दर रचना..
:-)

गुड्डोदादी said...

लगता है कि त्रस्त है
मजे की बात है कि
फिर भी हरदम व्यस्त है
(वो सुबह कभी तो आएगी )

Vinay said...

अति सुंदर कृति
---
नवीनतम प्रविष्टी: गुलाबी कोंपलें

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