अलग अलग हैं नाम प्रभु के, प्रभुता कैसे अलग करोगे?
सन्तानों के बीच में माँ की, ममता कैसे अलग करोगे?
अपने अपने धर्म सभी के, पंथ, वाद और नारे भी हैं
मगर लहू के रंग की यारो, समता कैसे अलग करोगे?
अपने श्रम और प्रतिभा के दम, नर-नारी आगे बढ़ते हैं
दे दोगे आरक्षण फिर भी, क्षमता कैसे अलग करोगे?
जीने का अन्दाज सभी का, जिसको जैसी लगन लगी है
ठान लिया कुछ करने की वो, दृढ़ता कैसे अलग करोगे?
शुभचिन्तक हम आमजनों के, घोषित करते हैं अब सारे
मूल प्रश्न है सुमन आज कि, रस्ता कैसे अलग करोगे?
सन्तानों के बीच में माँ की, ममता कैसे अलग करोगे?
अपने अपने धर्म सभी के, पंथ, वाद और नारे भी हैं
मगर लहू के रंग की यारो, समता कैसे अलग करोगे?
अपने श्रम और प्रतिभा के दम, नर-नारी आगे बढ़ते हैं
दे दोगे आरक्षण फिर भी, क्षमता कैसे अलग करोगे?
जीने का अन्दाज सभी का, जिसको जैसी लगन लगी है
ठान लिया कुछ करने की वो, दृढ़ता कैसे अलग करोगे?
शुभचिन्तक हम आमजनों के, घोषित करते हैं अब सारे
मूल प्रश्न है सुमन आज कि, रस्ता कैसे अलग करोगे?
6 comments:
सुन्दर प्रस्तुति!
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मकरसंक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
सन्तानों के बीच में माँ की, ममता कैसे अलग करोगे
मगर लहू के रंगों की तुम, समता कैसे अलग करोगे?
बहुत दिल हिला देने वाली रचना
आशा है लिखने की गर्म कलम कभी ठंडी नहीं करोगे
बहुत से प्रश्नों के उत्तर मांगती हुई सार्थक पोस्ट.....
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (16-01-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
सूचनार्थ |
राह मिलेगी शेष नहीं तब,
पथ भी तुमने भिन्न किया।
बहुत सुंदर रचना ।
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