Saturday, November 9, 2013

जगत का कैसे हो उद्धार?

पाठ पढ़ाया मर्यादा की, राम तेरा उपकार।
लोग पूजते तुमको प्रायः पर दूषित व्यवहार।
जगत का कैसे हो उद्धार?

राम तेरे कर्मों के आगे, लोग नवाते माथा।
सुनते और सुनाते अक्सर, लोग तुम्हारी गाथा।
ध्वनि विस्तारक यन्त्र लगाकर तेरे तोते गाते,
नहीं ध्यान रखते पड़ोस में, है कोई बीमार।
जगत का कैसे हो उद्धार?

राज-धर्म के तुम हो मानक, सदा सीखने लायक।
तुम्हें समझकर राम चले जो, बन जाते हैं नायक।
कुछ दावा करते रहते कि तुमको समझ लिया है।
जो ऐसे क्यों भाई पर वे, करते अत्याचार?
जगत का कैसे हो उद्धार?

मिल पाए इन्साफ सभी को, ऐसा नियम बनाया।
राम तुम्हीं सबकी सुनते थे, अपना कौन पराया?
मंदिर और किताबों में तुम कबतक कैद रहोगे?
भक्त तुम्हारे सुमन बने जो, अब करते व्यापार।
जगत का कैसे हो उद्धार? 

3 comments:

कालीपद "प्रसाद" said...

राम ,कृष्ण अब व्यापार का माल बन चूका है उनके तथा कथित भक्तों के लिए _सटीक प्रस्तुति !\
नई पोस्ट काम अधुरा है

Guzarish said...

नमस्कार !
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [11.11.2013]
चर्चामंच 1426 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
सादर
सरिता भाटिया

श्यामल सुमन said...

आदरणीया सरिता भाटिया जी - आपके प्रति विनम्र आभार जो आपने अपने प्रयास से रचना के फलक को और विस्तार देने के लिए अपने अपने लिंक में प्रकाशित किया।

आदरणीय कालीपद प्रसाद जी - आपलोगों ने रचना को सराहा जो मेरे लिए महत्वपूर्ण है - हार्दिक धन्यवाद

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विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!