गरमी से तन जल रहा, जल बिन सब बेचैन।
पलक पसीना चू रहा, लड़ना मुश्किल नैन।।
निर्धनता के सामने, छोटे हैं सब रोग।
लू, ठंढक, बरसात में, मरते निर्धन लोग।।
लथपथ सर से पाँव तक, तुरत नहाने बाद।
मोल पसीने का बहुत, गरमी से बर्बाद।।
धीरे - धीरे उम्र संग, बढ़ता नित संसार।
मँहगाई, गरमी बढ़ी, तेज बहुत रफ्तार।।
हर गरमी में आम को, मिले आम सौगात।
गरमी से गर जूझना, कर ले ठंढी बात।।
हरियाली जितनी अधिक, कम सूरज को क्रोध।
जग में सूरज जब तलक, है जीवन का बोध।।
हृदय घड़ा का ठंढ क्यों, उत्तर सुन लो भाय।
माटी - तन माटी मिले, गरमी क्यों दिखलाय??
ऐ सूरज बारिश बुला, आम लोग बेहाल।
भींगे सभी फुहार में, हो धरती खुशहाल।।
जंगल, पर्वत, पेड़ संग, कटे सुमन के बाग।
सूरज का गुस्सा उचित, उगल रहा है आग।।
2 comments:
एक एक शब्द और बात सोलह आने सच
सुन्दर प्रस्तुति
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