इक दूजे को जोड़ रहे हैं
कुछ को लेकिन छोड़ रहे हैं
लाख बुझाने पर ना समझे
फिर उनसे मुँह मोड़ रहे हैं
जीवन में जो प्रेम सुधा रस
निशि दिन उसे निचोड़ रहे हैं
कदर नहीं रिश्तों की जिनको
रिश्ता, उनसे तोड़ रहे हैं
चूक गया जो वही सुमन से
माथा अपना फोड़ रहे हैं
कुछ को लेकिन छोड़ रहे हैं
लाख बुझाने पर ना समझे
फिर उनसे मुँह मोड़ रहे हैं
जीवन में जो प्रेम सुधा रस
निशि दिन उसे निचोड़ रहे हैं
कदर नहीं रिश्तों की जिनको
रिश्ता, उनसे तोड़ रहे हैं
चूक गया जो वही सुमन से
माथा अपना फोड़ रहे हैं
1 comment:
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