Thursday, September 7, 2017

गगन को फिर झुकाना तुम

कभी  रुकना  सफर में फिर, जरा सा मुस्कुराना तुम 
सलीका   से  अगर  जीना,  तरीका  आजमाना  तुम 

भला  कैसे  ये  मुमकिन  है, गलत मैं हो नहीं सकता 
कहीं गलती अगर खुद की, उसे खुद को सुनाना तुम 

गगन  भी  झुक  रहा  देखो, भले  वो दूर जितना भी 
बना किरदार यूँ अपना, गगन को फिर  झुकाना तुम

मुहब्बत  कर  वही सकता, जिसे खुद से मुहब्बत हो
अगर   कोई  मिले  ऐसा,  उसे  सर  पे  बिठाना  तुम

वही   टूटेगा  तूफां   में,  अकड़  जिस  पेड़  में  होगी 
बुरे   हालात   में  आँखों  के, पानी  को  बचाना  तुम

नया  नित  खोज  करने को, मिली है जिन्दगी अपनी
सफल होगा तभी जीवन, नया कुछ कर दिखाना तुम 

कोई जी करके लिखता है, कोई जीता है लिखकर के
सुमन जी कर जहाँ लिखता, उसे फिर गुनगुनाना तुम  

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