Thursday, September 27, 2018

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि

प्रायः हम सभी,
मौत से डरते हैं और
यह भी सच है कि
एक ना एकदिन मरते हैं।

गीता कहती है, आत्मा को,
ना तो शस्त्र काट सकता, ना हवा सुखा सकती है,
ना पानी गला सकता, ना ही आग जला सकती है।
यानि आत्मा अमर है
फिर मौत से किस बात का डर है?
सिर्फ शरीर ही तो मरता है और
आत्मा हमेशा जिन्दा रहती है।

बावजूद इसके,
मानवता मौत से डरी हुई है।
लोग शरीर से तो जिन्दा दिखते है,
लेकिन बहुतों की आत्मा मरी हुई है।। 

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29-09-2018) को "पावन हो परिवेश" (चर्चा अंक-3109) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Onkar said...

सही कहा

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विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!