Wednesday, May 15, 2019

वतन पे भी इनायत हो

अगर शासन की भाषा में, किसी से भी हिकारत हो 
बताओ खुद वहाँ कैसे, अमन की फिर हिफाजत हो

करो आपस में  चर्चा ये, किया जो काम शासक ने 
नहीं  बातें  हों  जहरीली, सफाई  से  सियासत  हो

खिलाफत  दर्ज  करने को, जलाते रेल, गाड़ी क्यों
वो दौलत भी तो है अपनी, वतन पे भी इनायत हो

हुए  आजाद  कैसे   हम, जरा  कर   याद  कुर्बानी 
रहें  चौक  वतन  खातिर, सभी  को ये हिदायत हो

सुलझते  हैं  सभी  मसले,  हमेशा  बात  ही  करके 
मगर  हर  हाल में  गणतंत्र, अपना भी सलामत हो

जहाँ  रहते  सभी  मिलजुल, तभी वो देश बढ़ता है 
नहीं  मजहब, नहीं  भाषा, न आपस में अदावत हो

उठाओ  बात  अपनी  तुम, अगर  सत्ता  हुई  बहरी 
अमन से ही चमन कोई, सुमन से क्यों शिकायत हो

6 comments:

Ravindra Singh Yadav said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 16 मई 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

अनीता सैनी said...

बेहतरीन सृजन आदरणीय
सादर

Kamini Sinha said...

बहुत खूब....,सादर नमस्कार

Sudha Devrani said...

बेहद लाजवाब....
वाह!!!

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