Wednesday, July 10, 2019

खोल पंख फिर उड़ो गगन में

अपना अपना सपना देखो
उन सपनों में अपना देखो
तुझे सजन मिलना मुमकिन तब
सदा खोज तू उसे स्वजन में
खोल पंख फिर उड़ो गगन में

अपने अपने फर्ज हमारे
फर्ज सभी हैं कर्ज हमारे
खोजो साथी अपने जैसा
वरना जलते रहो अगन में
खोल पंख फिर उड़ो गगन में

जैसा जीते वैसा लिखना
जो अन्दर तुम बाहर दिखना
भला जगत का कैसे संभव
वक्त गुजारो सदा मनन में
खोल पंख फिर उड़ो गगन में

जीवन काल हमारा छोटा
वक्त कभी ना करना खोटा
जनम सुमन का इस माटी से
खोना फिर से इसी वतन में
खोल पंख फिर उड़ो गगन में 

4 comments:

Sweta sinha said...

सुंदर सकारात्मक सृजन..👌

अनीता सैनी said...

बहुत सुन्दर सृजन आदरणीय
सादर

Meena sharma said...

बहुत सुंदर

Anuradha chauhan said...

सुंदर प्रस्तुति

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