Wednesday, September 18, 2019

खतरों भरा सफर लगता है

बदला सा मंजर लगता है
सच लिखने में डर लगता है

कर सवाल तो देशद्रोह का
दोष तुरत मुझ पर लगता है

तीखे आज सभी के तेवर
अमृत यार ज़हर लगता है

रोटी बिनु बहुमत जीते जब
जीवन तभी कहर लगता है

न्याय, भीड़ के हाथों में अब
खतरों भरा सफर लगता है

छली गयी जनता दशकों से
सब कुछ इधर उधर लगता है

लोक जागरण सुमन जरूरी
सूना गाँव शहर लगता है 

1 comment:

Sagar said...

वाह बेहतरीन रचनाओं का संगम।एक से बढ़कर एक प्रस्तुति।
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