Tuesday, January 14, 2020

कब दोगे तुम मरहम साहिब

दिखा  रहे  पीड़ा  कम  साहिब!
बुद्धू क्या  दिखते  हम साहिब?

विज्ञापन   में   हँसी   ख़ुशी  यूँ,
लगता  कहीं  नहीं  गम साहिब।

जख्म   हज़ारों   सहतीं  जनता,
कब  दोगे  तुम  मरहम  साहिब?

करते  जुल्मी,  ज़ुल्म   कहीं तो,
होतीं  हैं   ऑंखें   नम   साहिब!

यूँ   बतियाते,   पिछलग्गू   सब, 
मानो,  पी   हो  चीलम  साहिब!

तख्त    बिठाकर   वही   उतारे,
जनता  में   इतना  दम  साहिब।

तलवारों  से  अधिक सुमन की,
अभी कलम में दमखम साहिब।

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