Wednesday, April 8, 2020

ऐसा आजतलक ना देखा

व्यर्थ लगे सब अर्जित साधन ऐसा आजतलक ना देखा
दहशत में है सबका जीवन ऐसा आजतलक ना देखा

धरती से मंगल तक पहुंचे पर क्या मंगल हो पाया?
खोया खोया है सबका मन ऐसा आजतलक ना देखा

लकवाग्रस्त किया दुनिया को छोटे इक विषाणु ने
खुद से कैद किया खुद का तन ऐसा आजतलक ना देखा

कौन सहारा किसको देगा केवल बात सहारा है
याद किया अपना भी बचपन ऐसा आजतलक ना देखा

आपस में सहयोग परस्पर करो सुमन है जीना तो
सब घर में पर सूना आंगन ऐसा आजतलक ना देखा

2 comments:

Onkar said...

सुन्दर रचना

उषा किरण said...

क्या मंगल हो पाया...बहुत खूब !!!

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