Wednesday, May 13, 2020

महफिल में मरहम बाँटे है

नहीं  किसीका  गम  बाँटे है
सब  अपना  परचम  बाँटे है

हाल  अभी  बेहाल खबर में
प्यासे  को  शबनम  बाँटे  है

लोगों को घायल करते फिर 
महफिल  में  मरहम  बाँटे है

लोक - लुभावन   वादे  ऐसे
ज्यों  कुदरत  मौसम बाँटे है

छीन उजाला आमजनों का
फिर घर घर क्य तम बाँटे है

हम  गरीब जीने को हरदिन
आपस  में  दमखम  बाँटे है

बाँट  चेतना, प्यार  सुमन तू
जितना  बाँटो,  कम  बाँटे है

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