नहीं किसीका गम बाँटे है
सब अपना परचम बाँटे है
हाल अभी बेहाल खबर में
प्यासे को शबनम बाँटे है
लोगों को घायल करते फिर
महफिल में मरहम बाँटे है
लोक - लुभावन वादे ऐसे
ज्यों कुदरत मौसम बाँटे है
छीन उजाला आमजनों का
फिर घर घर क्य तम बाँटे है
हम गरीब जीने को हरदिन
आपस में दमखम बाँटे है
बाँट चेतना, प्यार सुमन तू
जितना बाँटो, कम बाँटे है
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