खुद को अच्छा बता रहे हो
क्या ऐसा जो छुपा रहे हो
जनमत में उठते सवाल को
ताकत से क्यों दबा रहे हो
लोकतंत्र में क्यों लोगों को
उल्टा सीधा पढ़ा रहे हो
दिल पे हाथ रखो फिर सोचो
राज-धर्म क्या निभा रहे हो
सभी मीडिया वश में करके
ख़बरें अपनी दिखा रहे हो
होते निन्दक ही शुभचिंतक
दूर उसी को भगा रहे हो
रस्ता सुमन कलम दिखलाए
कलमकार को डरा रहे हो
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