यूँ कुदरत का मंजर होता
काश! वहाँ अपना घर होता
साथ साथ उड़ जाते घर को
चिड़ियों सा हमको पर होता
दुनियादारी झट निबटा कर
बतियाने का अवसर होता
इक दूजे की आँखों में हम
खो जाते, ये अक्सर होता
उस दुनिया से इस दुनिया में
शोर, छलावा कमतर होता
भूख नहीं होती धन-पद की
हृदय - भाव का आदर होता
यहीं सुमन की छोटी दुनिया
स्वर्ग - लोक से सुन्दर होता
No comments:
Post a Comment