तुझे मुबारक देव दिवाली, रात हमारी सड़कों पर
अब तो निश्चित तुमसे होगी, बात हमारी सड़कों पर
अहंकार में डूबा शासक, कब जनता की सुनता है?
आँखें खोलो देख जरा, औकात हमारी सड़कों पर
काम छोड़कर परिवारों संग, किस कारण ये निकले हैं
सोच नहीं तो फिर होगी, मुलकात हमारी सड़कों पर
हर बहरे शासक को हमने, अपनी चीख सुनायी है
बीते गरमी, जाड़ा या, बरसात हमारी सड़कों पर
सुमन देश बढ़ता है आगे, बस मजदूर किसानों से
मजबूरी में अब उतरी है, जात हमारी सड़कों पर
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