Sunday, January 3, 2021

हे महाकाल!

हे महाकाल!
क्यों लेकर आए बीस-बीस सा साल,
काल के गाल, महाविकराल, 
कुछ समा गये उसमें,
कुछ के सामने जीने का सवाल
फिर कब सुधरेंगे सबके हाल?
हे महाकाल!

जब आमलोगों की आम जिन्दगी,
परिस्थितियों से हलकान हो,
जिन्दगी और मौत में,
मौत चुनना आसान हो,
जीवित लोगों में जीने की जद्दोजहद,
चारों तरफ निराशा ही निराशा बेहद,
फिर क्यों इन अर्धमृत लोगों पर
फेंके जा रहे हैं प्रतिदिन, प्रतिपल,
कूटनीतिक और सियासी जाल?
हे महाकाल!

दुनिया उम्मीद पर जीती है,
शायद इसलिए जहर गमों का पीती है,
स्वाभिमान के साथ जीना,
बहुजन के सामने ज्वलंत प्रश्न है,
लेकिन कुबेर और सियासी लोगों के लिए,
ये जिन्दगी सिर्फ जश्न ही जश्न है।
क्या इन्साफ करोगे और मिटाओगेअसमानता?
क्या रोक पाओगे ये रोज रोज का बवाल?
हे महाकाल!

हमसे तुम हो, तुमसे हम नहीं,
अगर तुझे गम नहीं तो हमें भी गम नहीं,
तुम्हारे लिए हमारे समान कौन है दूजा?
हम मिट गए तो फिर कौन करेगा तेरी पूजा?
सोच़! सोचो!! महाकाल,
हमारे लिए नहीं अपने अस्तित्व की खातिर सोचो,
आजमाओ अपनी ताकत और बताओ कि
क्या ला पाओगे आमलोगों के लिए,
उम्मीदों से भरपूर एक नया साल?
हे महाकाल!

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