वाह वाह क्यों कहने लगते, कुछ कहते सुल्तान अभी
जबकि लोग करोड़ों बेबस, निकला कहाँ निदान अभी
गाँव शहर में अपनों के सँग, जब तब बातें होतीं हैं
क्यों डर का माहौल घना है, क्यों बंधक मुस्कान अभी
दूर हुए अपनों से अपने, समय हुआ है क्यूँ ऐसा
दुनिया तो पहले जैसी पर, लगती क्यों वीरान अभी
आस - पास में चापलूस की, भीड़ देख वो खुश होते
पढ़े - लिखे, विद्वानों तक के, होते हैं अपमान अभी
शासक-दल में एक चलन जो, दोष मढ़ें प्रतिपक्षी पर
हाल बुरा पर समाचार में, राजा का गुणगान अभी
बहुत अनूठा नशा पिलाया, वैचारिक अंधेपन का
कल की चिन्ता छोड़, मस्त वो, उठा रहे नुकसान अभी
साथी! कल की पीढ़ी खातिर, सोचो मिलकर चेत जरा
बात सुमन की गाँठ बाँध या, बने रहो नादान अभी
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