देश किधर अब जा रहा, हालत बिल्कुल साफ।
न्यायालय से मिल रहा, भगवन को इन्साफ।।
कभी धर्म था जोड़ता, बाँटे अभी समाज।
इस नफरत के बीज में, है सत्ता का राज।।
बिगड़े अब हालात जो, क्या कुछ करें निदान?
कलमकार करने लगे, सत्ता का गुणगान।।
सभी धर्म के मूल में, प्रेम और सद्भाव।
अभी धर्म के नाम पर, होता नित टकराव।।
ख़बरों में भी धर्म का, मचा हुआ है शोर।
जब आपस में हम लड़ें, देश बने कमजोर।।
पण्डित, मुल्ला, पादरी, बाँट रहे क्या प्यार?
नाम धर्म का पर करें, नफरत का व्यापार।।
रो कर या हँसकर सुमन, करना हमें सुधार।
बचे नहीं कुछ भी मगर, बचे दिलों में प्यार।।
क्या बात है, एक एक शेर लाजबाव,सादर नमस्कार आपको 🙏
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