Saturday, July 30, 2022

धरती का श्रृंगार

झूमर, कजरी लिख दिया,  कुछ सावन के गीत। 
गाऊँ जिसके साथ मैं,  मिला नहीं  वो मीत।। 

प्रीतम बादल से मिलन, चाह धरा की खास।
तब रोता बादल जहाँ, जगी धरा की प्यास।।

बीज अंकुरित हो रहे, देख धरा का प्यार।
हरियाली ने कर दिया, धरती का श्रृंगार।।

प्रेम सृजन का मूल है, सृजन धरा का काज।
वर्षा है रानी अगर, है वसंत ऋतुराज।।

सावन, फागुन में सुमन, पिया मिलन की आस।
सावन में बारिश हुई, फागुन है मधुमास।।

8 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुंदर सावनी दोहे ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी लिखी रचना सोमवार 01 अगस्त 2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

संगीता स्वरूप

जिज्ञासा सिंह said...


सावन, फागुन में सुमन, पिया मिलन की आस।
सावन में बारिश हुई, फागुन है मधुमास।।..ऋतु श्रृंगार करते सुंदर दोहे।

अनीता सैनी said...

बहुत सुंदर।

विश्वमोहन said...

वाह! बहुत सुंदर।

रेणु said...

बीज अंकुरित हो रहे, देख धरा का प्यार।
हरियाली ने कर दिया, धरती का श्रृंगार।।
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति श्यामल जी।हार्दिक बधाई 🙏

Sudha Devrani said...

वाह!!!
बहुत ही सुन्दर ...मनमोहक ।

Anonymous said...

प्रेम सृजन का मूल है, सृजन धरा का काज।
वर्षा है रानी अगर, है वसंत ऋतुराज।।
बहुत सुन्दर रचना…!य

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