करता आज शिकार तू, लेकर जो हथियार।
कल शायद तू भी बने, उसका एक शिकार।।
वही डराते लोग को, जो खुद में भयभीत।
इस कारण दुश्मन बने, कल तक जो थे मीत।।
शासन से पूछे अगर, कोई उचित सवाल।
तब शासक का देखिए, गजब रूप विकराल।।
आमजनों को लूटना, यही सियासी खेल।
मत भूलें शासक कभी, जनता हाथ नकेल।।
साँप, नेेवले चढ़ रहे, मिलकर एक मचान।
राजनीति में नित नया, मुमकिन है तूफान।।
शासक - दल सन्देह में, लगे बहुत ही दाग।
सुलग रही अब लोग में, परिवर्तन की आग।।
लोक जागरण के लिए, लिखे सुमन कुछ रोज।
संभल संभल जीना अगर, नित्य जरूरी खोज।।
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