पहले जीवन से तू जुड़ जा
फिर पतंग बन के तू उड़ जा
ऊँचा उड़ कर देख धरा को
लेकिन फिर नीचे को मुड़ जा
ऊँची सोच, उठाता जीवन
सपने भी दिखलाता जीवन
मन पतंग बन बहके जैसे
अंकुश उसे लगाता जीवन
श्रम करके हक पाना होगा
बिछुड़े को अपनाना होगा
मन पतंग की डोर न छूटे
इस पर ध्यान लगाना होगा
मन, पतंग तो लगे एक है
उड़ने के जज्बे अनेक हैं
बहके नहीं कदम उड़ने में
करे नियंत्रित जो विवेक है
नहीं डोर तू काट कभी भी
नहीं घृणा तू बाँट कभी भी
सुमन अगर जीवंत, घटे क्यूं
फिर खुशबू की ठाट कभी भी
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