खुला खुला सा घर आँगन हो
और पंछी सा नित जीवन हो
मुक्त गगन उड़ने की खातिर
नहीं कहीं कोई बन्धन हो
घटे वही जीवन में नित नित
जो चाहत में अपने मन हो
फूटी कौड़ी पास नहीं पर
कम से कम खाता जनधन हो
आती जाती दौलत पर भी
नेक सोच हरदम चिन्तन हो
हर विरोध से मिल टकराना
भूल आपसी जो अनबन हो
सुमन विचारों के बल उड़ना
आदम तुम हो या गोधन हो
No comments:
Post a Comment