Thursday, September 17, 2020

जो पड़ोसी तलक दूर है

प्यार  का  ये  अजब  नूर  है
जो   पड़ोसी   तलक  दूर  है

आस  जिनसे  लगी आपको
वही   मदहोश,   मगरूर   है

बात आका की बस जो सुने
लोग   ऐसे   जो  मजबूर  है

चाँद - तारे   कहाँ   खो  गये
भ्रम   जुगनू   को  भरपूर  है

हम कहाँ और परिजन कहाँ
ये   जमाना   बहुत   क्रूर  है

हाल  को  है बदलना अगर
यार   लड़ने   का  दस्तूर  है

जहाँ  उल्टी  हवा  है  सुमन
वहीं   जाना   भी   मंजूर  है

No comments:

Post a Comment