रूप यही श्रृंगार तुम्हरा
इससे क्यों इन्कार तुम्हारा
नेक सोच होने पर दिखता
चेहरे पर विस्तार तुम्हारा
लिखा हुआ तेरी सूरत पे
शायद नित्य विचार तुम्हारा
सारे लोग यहाँ पर सुन्दर
सुन्दरता अधिकार तुम्हारा
रूप सजाने का हर साधन
ये तो बस बाजार तुम्हारा
धूल धूसरित सब लोगों को
और चाहिए प्यार तुम्हारा
लोग जगाने की कोशिश में
सुमन हुआ बेकार तुम्हारा
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