क्या मेरा हिन्दुस्तान नहीं?
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बहुत कठिन होना खुद्दार,
कौन, कहाँ  कह दे गद्दार,
बुद्धिजीवी, कलमकार को, दे शासक स्थान नहीं।
तुझे भरम  है बस  तेरा क्या मेरा हिन्दुस्तान नहीं??
मजहब  की  दीवार  बनाया, बाँटा हमको अन्दर में।
जिस कारण यूँ आँसू निकले, पानी बढ़ा समन्दर में।
चलते  फिरते  लोगों  के भी, चेहरे पर मुस्कान नहीं।
तुझे भरम है -----
लोग  भले भूखे मरते हों, तुझको पड़ता फर्क कहाँ? 
हाल  देश  का  है क्यों ऐसा, पास तुम्हारे तर्क कहाँ? 
मानो खुद को राजा लेकिन, जनमत में सम्मान नहीं।
तुझे भरम है -----
क्या  गलती जो हुई है तुमसे, अपने भीतर झाँक जरा।
ये  सिंहासन  आमजनों का, अपनी ताकत आँक जरा।
शापित सा होकर जाओगे, अगर सुमन का ध्यान नहीं।
तुझे भरम है -----
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