कबीरी मौज है अपनी, अगर तू दूर है तो चल
जलाना घर मुझे अपना, यदि मंजूर है तो चल
भले तू मातबर जितने, नहीं दुनिया चला सकते
बनो फिर आमलोगों - सा, तू कोहिनूर है तो चल
सभी हैं मस्त अपने में, किसी की कौन सुनता है
उसे भी साथ कर ले जो, भले मगरूर है तो चल
हिकारत से किसी को भी, नहीं देखो जमाने में
मिले जीने का हक सबको, यही दस्तूर है तो चल
सदा इन्सानियत जग में, सभी थर्मों से ऊपर है
इसे दिल से समझ ले तू, सुमन बेनूर है तो चल
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