टूटे फ़ूटे झोंपड़े,
जिसमें बैठे अनगिनत लोग,
जज साहब के आने के इन्तजार में,
सबके सब वर्तमान हालात से परेशान।
फिर भी सब करते अदालत का सम्मान।।
न्याय के मंदिर में अक्सर,
झूठ का बोलबाला और
सच का मुँह काला,
हमेशा ग्राहक खोजते वकील,
जो पेश करते हैं हर तरह के दलील,
अदालत का चक्कर काटने को
मजबूर हैं कई सच्चे और बेबस इन्सान।
फिर भी सब करते अदालत का सम्मान।।
मजलूमों पर पाबंदी,
जज साहब बेपरवाह,
वो अदालत तब आएंगे,
जब होगी उनकी चाह,
धूप में सिंकते हजारों लोग,
पैसे की लाचारी और
लोग भूख से हलकान।
फिर भी सब करते अदालत का सम्मान।।
सच है कि कोर्ट सबसे ऊपर है,
पर इस कोर्ट की व्यवस्था,
किस कानून के भीतर है?
न्याय लोगों के लिए या
न्याय की बलि वेदी पर लोग?
जबकि न्याय के मंदिर में ही फैला
सर्वत्र घोर अव्यवस्था का रोग!
यह न्यायालय की उन्नति है या
फिर हो रहा न्यायिक व्यवस्था का अवसान।
फिर भी सब करते अदालत का सम्मान।।
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