कितना सुमन अकेला है?
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अबतक जिनको समझा अपना,
साबित वही भयानक सपना,
साथ चले जो सबको लेकर, क्या कुछ उसने झेला है?
सोच रहा माली उपवन का, कितना सुमन अकेला है?
गिना रहे बच्चे उपलब्धि, कितने सर पर काम अभी।
माँ की ममता, प्यार पिता का, लगा रहे हैं दाम अभी।
कौन है अपना कौन पराया, चुनना एक झमेला है।
सोच रहा माली -----
आँसू खुशियों के आते जब, अपने बच्चे सफल हुए।
मगर जरूरत पर ये बच्चे, मिलने तक में विफल हुए।
अन्त-काल में सब ये बोले, क्या किस्मत का खेला है?
सोच रहा माली -----
शिक्षा पुस्तक या पुरुखों की, खुद को रोज जगाए जो।
बूढ़ा पेड़ खड़ा इक आँगन, उसको फिर सहलाए जो।
साथ उसी के बढ़े कदम पर, पीछे नहीं धकेला है।
सोच रहा माली -----
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