अब कहता ये अखबार, जमाना बदल रहा।
पर गली - गली बटमार, जमाना बदल रहा।।
सत्ता की खास सनक है, खबरों की वही चमक हैं।
अनगिन भूखे - नंगों की, जनता को नहीं भनक है।
है मस्त अभी सरकार, जमाना बदल रहा।
पर गली - गली -----
अक्सर चुनाव भी आता, लेकर दुराव भी आता।
सत्ता खातिर धन-बर्षा, तो फिर अभाव भी आता।
जो चुप उनको धिक्कार, जमाना बदल रहा।
पर गली - गली -----
अपराधी को संरक्षण, बस अपनों को आरक्षण।
सारे हैं खेल सियासी, जनता करती है निरीक्षण।
क्यों सोच-सुमन बीमार, जमाना बदल रहा।
पर गली - गली -----
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