सब जानते शुरू से न झूठ बोले दर्पण
फिर सच को देखते ही क्यों टूटता है दर्पण?
मुश्किल पता लगाना अपनी असल शकल का
होता है सामना जब क्यों रूठता है दर्पण?
सब कुछ दिखाती आँखें क्या देख पाती खुद को?
निज-आँख देखते तो क्यों मुस्कुराता दर्पण?
कायर है होंठ कितना कहकर भी कह न पाता
आँखें बताती सब कुछ और खिलखिलाता दर्पण
मिलता कहाँ मुकम्मल हिस्सा भी अपने हक का
जब सच नहीं समाता तो टूटता है दर्पण
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21 comments:
आँखें दिखाती सब कुछ,क्या देख पाती खुद को?
निज-आँख देखते तो, क्यों मुस्कुराता दर्पण?
bahuth hi sach se bhari hui lines hain, sir aapka dhanybaad ki aap ne mera blog padha , or accha v kaha blog par hi,par aap se bhent hui accha masoos huaa ... miilte rahiye ..
कायर है होंठ कितना, कहकर भी कह न पाता।
आँखें बताती सब कुछ,और खिलखिलाता दर्पण।।
wah behtarin badhai
शयामल जी बहुत खूबसूरत भाव हैं, शब्द भी बहुत अच्छे चुने है, पर एक बात कहूं अगर बुरा न माने तो, कुछ खामियां हैं इसमे, ग़ज़ल की अपनी एक व्याकरण है, मतले का भी एक कानून है, आपका मतला काफिया फोलो नहीं कर रहा है. यह एक बहुत अच्छी ग़ज़ल बन सकती है. उम्मीद करूंगा की आप अपने अनुज से नाराज नहीं होंगे. आपका www.merakamra.blogspot.com . पर आना मुझे बहुत अच्छा लगा.
श्यामल जी आपकी बेहतरीन कृति । धन्यवाद
बहुत ही अच्छा लिखा
बहुत ही सुंदर और सटीक अभिव्यक्ति.
मनुज जी,
सबसे पहले धन्यवाद।
भाई बुरा मानने का कोई प्रश्न ही नहीं है। मैं हृदय से मानता हूँ कि सीखने की न तो कोई सीमा है न उम्र। हाल ही में योगेन्द्र मौदगिल साहब के सहयोग से कुण्डली छंद के बारे में सीखा। मैं यह भी मानता हूँ कि गजल लिखना कठिन है। यदि आप भी थोडा कष्ट उठाकर इसी रचना को ठीक कर देते तो मुझे कुछ नयी जानकारी मिल जाती ताकि भबिष्य में होने वाली गलती से बच पाता।
पुनः धन्यवाद अपनी बात बेबाकी से रखने के लिए। मैं तो हर रचनाकार से इसी प्रकार की अपेक्षा रखता हूँ ताकि हिन्दी ब्लाग की दुनियाँ और बेहतर बन सके।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
Dear Shymal ji,
वाह क्या खूबसूरत कविता है यह। मजा आ गया पढ कर। आपने मेरे ब्लॉग "थाट मशीन" पे
मेरी एक कविता पे टिप्प्पणी की थी, बस हम चले आए उसे पढ के आप के इस सुन्दर ख्यालों की दुनिया में।
मैं आप का तहे दिल से शुक्रिया करता हूं मेरे ब्लाग पे आकर टिप्पणी करने के लिए। मैं आपके इस ब्लाग पे आपकी टिप्पणी पढ कर ही आया हू॓ बहुत अच्छा लिख्ते हो आप।
हमने तो अभी हिन्दी में लिखना दो चार साल से शुरु किया है। आप जैसे लोग उत्साह बढाएंगे,तो हम भी हिन्दी में लिखते रहेगे। हम वैसे तो इन्गलिश में लिखते है "सुलेखा ब्लॉग" पर।
यह भी उम्मीद करता हूं कि आप निरंतर ऐसे ही आते रहेंगे मेरे ब्लाग "थाट मशीन" पर। कृप्या आप मेरी दूसरी रचनाएं भी पढें और टिप्पणी किजीए
धन्याबाद। "राजी कुशवाहा"
बहुत बढ़िया सुमन जी !
सुन्दर अभिव्यक्ति
syamal suman jii ..sadar pranam
yun to aapki har rachna aapki soch ka darpan hai or aaj ke liye jo jaroori haai vo chintan bhii..
aap ki ye rachna bhi aapko dunia ki soch se zudaa karti hai ..
jaise aap koi path pradarshak ho.
गीत वही और राग वही है,
वही सुर सब साज़ वही है,
गाने का अंदाज़ वही पर,
गायक ही बस बदल गये हैं।
लोग वही और देश वही है,
नाम नया परिवेश वही है,
वही तंत्र का मंत्र अभी तक,
शासक ही बस बदल गये हैं।
शिष्य वही और ज्ञान वही है,
तेजस्वी का मान वही है,
ज्ञान स्वार्थ से लिपट गया क्यों?
शिक्षक भी तो बदल गये हैं।
धर्म वही और ध्यान वही है,
वही सुमन भगवान वही है,
जो है अधर्मी मौज उसी की,
जगपालक क्या बदल गये हैं?
bandhaii swikar karen
शयामल जी
क्या खूबसूरत अंदाज मैं दर्पण को दर्पण दिखलाया
सुंदर अति सुंदर
वाह सुमन जी /कम लिखते हो मगर लिखते ऐसा हो की अब क्या कहें /
झूंठ ++चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो ,आइना झूंठ बोलता ही नही //-जिंदगी से बडी सजा ही नही और क्या जुर्म है पता ही नहीं
टूटना __एक पत्थर था किसी एक ने फैका होगा /आइना टूटा तो चेहरे नजर आए कितने /
मुस्कराता है दर्पण __आइना देख के तसल्ली हुई ,शायद इस घर में जनता है कोई {{मुझे }}
या _आइना मुझे देख के हैरान सा क्यों है
मिलता कहाँ मुकम्मल,हिस्सा भी अपने हक का।
जब सच नहीं समाता तो टूटता है दर्पण।।
क्या खूब लिखा है ।
आँखें दिखाती सब कुछ,क्या देख पाती खुद को?
निज-आँख देखते तो, क्यों मुस्कुराता दर्पण?
क्या बात है मज़ा आ गया. मन आनंदित हो गया.
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 08 -12 - 2011 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में आज... अजब पागल सी लडकी है .
बहुत खूब सर!
सादर
सब कुछ दिखाती आँखें क्या देख पाती खुद को?
......एक सच बहुत सादगी से बयान कर दिया आपने ,बहुत खूब !
बहुत सुन्दर रचना सुमन जी ! आनंद आ गया !
wahh...
bahut hi sundar rachana hai...
खूबसूरत भाव लिये,सत्य को जीवन के दर्पन में निहारती जिंदगी
खूबसूरत भाव लिये,सत्य को जीवन के दर्पन में निहारती जिंदगी
माथे की बिंदी को निहारता दर्पण
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