कैसे गीत खुशी के गाऊँ?
सच्चा मीत कहाँ से लाऊँ?
रिश्ता दुनियाँ में जैसे व्यापार हो गया।
बीते कल का ये मानो अखबार हो गया।।
जीने की खातिर दुनियाँ में रिश्तों का दस्तूर।
भाव नहीं दिखता रिश्तों मे जीने को मजबूर।।
फिर भी जीना भला क्यों स्वीकार हो गया?
बीते कल का -----
अपनापन दिखलाता जो भी क्या अपना होता है
सच्चे अर्थों में अपनापन तो सपना होता है।।
फिर कैसे धरती अपना परिवार हो गया?
बीते कल का -----
रंगमंच गर है जीवन तो हम अभिनय करते हैं।
दिखलाना हो सुमन को सचमुच खूब प्रणय करते हैं।
वह पल लगता है अपना संसार हो गया।
बीते कल का -----
सच्चा मीत कहाँ से लाऊँ?
रिश्ता दुनियाँ में जैसे व्यापार हो गया।
बीते कल का ये मानो अखबार हो गया।।
जीने की खातिर दुनियाँ में रिश्तों का दस्तूर।
भाव नहीं दिखता रिश्तों मे जीने को मजबूर।।
फिर भी जीना भला क्यों स्वीकार हो गया?
बीते कल का -----
अपनापन दिखलाता जो भी क्या अपना होता है
सच्चे अर्थों में अपनापन तो सपना होता है।।
फिर कैसे धरती अपना परिवार हो गया?
बीते कल का -----
रंगमंच गर है जीवन तो हम अभिनय करते हैं।
दिखलाना हो सुमन को सचमुच खूब प्रणय करते हैं।
वह पल लगता है अपना संसार हो गया।
बीते कल का -----
14 comments:
अपनापन दिखलाता जो भी क्या अपना होता है
सच्चे अर्थों में अपनापन तो सपना होता है।।
कैसे कहते हैं अपना परिवार हो गया।
बीते कल का ये मानो अखबार हो गया।।
अपनेपन को, रिश्तों को बयान करती.............
ताने बाने को बुनती खूबसूरत................लाजवाब रचना
अपनापन दिखलाता जो भी क्या अपना होता है
सच्चे अर्थों में अपनापन तो सपना होता है।।
कैसे कहते हैं अपना परिवार हो गया।
बीते कल का ये मानो अखबार हो गया।।
yahi panktiya jaan he aapki rachna ki..kam se kam mujhe esa lagta he vese bhi digambarji ne ynha bhi unhi panktiyo ko ukera..
shyamal bhai,
sadar abhivaadan. bahut sundar shabdon ke prayog se bilkul anokhaa bhaav nikal kar aayaa hai, mujhe to bahut pasand aayaa.
अपनापन दिखलाता जो भी क्या अपना होता है
सच्चे अर्थों में अपनापन तो सपना होता है।।
कैसे कहते हैं अपना परिवार हो गया।
बीते कल का ये मानो अखबार हो गया।।
wah suman ji khoob likha hai.badhai.
bahut sahi kaha aapne---------apnapan to sapna hota hai........ek katu satya.
apnapan kahan hai?ye wakai ek prashna hai aur jawab kahin nhi hai.
जीने की खातिर दुनियाँ में रिश्तों का दस्तूर।
भाव नहीं दिखता रिश्तों मे जीने को मजबूर।।
फिर भी जीना भला क्यों स्वीकार हो गया।
बीते कल का ये मानो अखबार हो गया।।
सर जी आपकी लेखनी में जादू है शब्दों को ऐसे जोडते हैं कि वो एक मधुर सुंदर कविता बनने को मजबूर हो जाती है बेहतरीन रचना के लिए बारम्बार बधाई आपको
आप सभी को बैसाखी पर्व दी लख लख बधाईयां
Shukriya & Baisaakhi Mubaarak Ho.
Shukriya & Baisaakhi Mubaarak Ho.
बेहद प्रभावशाली कविता है ये ...आप बहुत अच्छा लिखते हैं .....
रिश्ता दुनियाँ में जैसे व्यापार हो गया।
बीते कल का ये मानो अखबार हो गया।।
KHASKAR
बीते कल का ये मानो अखबार हो गया।।
YE LINE DIL KO BHAA GAYI....
...RISHTOON KE PHJALSFOON KO ITNI ACCHI TARAH BAYAN KARNE KE LIYE BADHAI!!
सुमन जी
पहली बार आपकी रचनाओं को पढ़ा ... विभोर हूं ... जीवन की आपधापी को शब्दों में ढाल कर आपने यहां पर अनुपम भवनात्मक सुमन वाटिका का निर्माण कर रखा है - सप्रेम
bahut accha laga
loksangarsha
"Beete kalkaa ye akhbaar ho gaya..."
Laga jaise mere dilkee baat kahee gayee ho...kitnaa dardnaak sach hai..
आप सबने अपनी अपनी टिप्पणियों द्वारा जो समर्थन मेरी रचना को दिया है वह मेरे कलम की ताकत बनेगी और इसके लिए मैं आप सबका हार्दिक रूप से शुक्रगुजार हूँ। यूँ ही स्नेह बनाये रखें।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com:
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